Tuesday 21 February 2017

ओम प्रकाश

ओम प्रकाश (१९ दिसम्बर १९१९ २१ फ़रवरी १९९८) भारतीय हिन्दी सिनेमा के हास्य अभिनेता थे। उन्होंने हावड़ा ब्रिज (१९५८), दस लाख (१९६६), प्यार किये जा (१९६६), पड़ोसन (१९६८), चुपके चुपके (१९७५), नमक हलाल (१९८२), गोलमाल (१९७९), चमेली की शादी (१९८६), शराबी (१९८४) और लावारिस (१९८१) सहित अनेकों सफल फ़िल्मों में अभिनय किया।

व्यक्तिगत जीवन 

ओम प्रकाश का जन्म १९ दिसम्बर १९१९ को लाहौर में हुआ। उनका जन्म का नाम ओम प्रकाश बख़्शी था लेकिन वो बाद में केवल ओम प्रकाश नाम से प्रसिद्ध हुये।
ओमप्रकाश का नाम सामने आते ही उनकी हंसमुख छवि सामने आ जाती है. चाहे शराबी फिल्म का मुंशीलाल हो या फिर चाहे नमक हलाल का दद्दू जैसा किरदार ही क्यों न हो, ओमप्रकाश ने अपनी अभिनय की प्रतिभा के बल पर हर भारतीय व्यक्ति के दिलों में राज किया. उनकी लोकप्रियता इतनी थी कि लोग केवल उनका अभिनय देखने के लिये ही फिल्मों की टिकट खरीदा करते थे. ओमप्रकाश का जन्म 19 दिसंबर 1919 को जम्मू में हुआ था. वे भारतीय सिनेमा जगत में प्रसिद्ध चरित्र अभिनेता में शुमार थे. उन्होेने 350 से अधिक फिल्मों में काम किया. ओमप्रकाश की मृत्यु 21 फरवरी 1998 को मुंबई में हुई थी. ओमप्रकाश का पूरा नाम ओमप्रकाश बक्शी था. उन्होंने अपनी प्रारम्भिक शिक्षा लाहौर से ही ली थी. कला के प्रति वे शुरू से ही काफी रूचि रखते थे और यही कारण रहा कि उन्होंने बचपन से ही शास्त्रीय संगीत की शिक्षा प्राप्त करना शुरू कर दी थी. ओमप्रकाश ने 1937 में आॅल इंडिया रेडियो सिलोन में नौकरी की थी. उन्होंने अपने फ़िल्मी करियर की शुरूआत दासी से की थी. इसके बाद उन्होेंने दुनिया गोल है, झंकार, लकीरे जैसे फिल्मों में अभिनय में अपनी अलग ही पहचान बनाई. उन्होंने स्वयं की भी फिल्म कंपनी बनाकर भैयाजी, गेट वे आॅफ इंडिया, चाचा जिंदाबाद, संजोग जैसी फिल्मों का निर्माण किया. वे चरित्र अभिनेता के साथ ही हास्य अभिनेता भी थे. ओमप्रकाश की प्रसिद्ध फिल्मों में पडोसन, जूली, दस लाख, चुपके-चुपके, शराबी. नमक हलाल,बुड्ढा मिल गया,भाई भाई आदि फिल्मे शामिल है.
अभिनेता ओमप्रकाश खुशमिजाज तबीयत के थे और किस्सा-लतीफागोई बड़े चाव से सुनाया करते थे। हंसी-मजाक और लतीफों का ऐसा समां बांधते कि भीड़ इकट्ठा हो जाती। वे जम्मू के रहने वाले थे। एक बार अपने दोस्त की शादी में गए तो मौके पर बड़ा मजमा लगा लिया। संयोगवश उस शादी में लाहौर के मशहूर फिल्म निर्माता दलसुख पंचोली आए हुए थे। लोगों का मजमा देखकर उन्होंने एक वेटर से पूछा कि वहां क्या हो रहा है, क्या कोई सेलिब्रिटी या फिल्म स्टार आया हुआ है? वेटर बोला, जनाब मेरी जानकारी में ऐसा कुछ नहीं है। दलसुख पंचोली ने फिर पूछा कि यह मजमा क्यों लगा हुआ है? वेटर बोला, जनाब यह दूल्हे का एक दोस्त है, जिसने हंसा-हंसा कर लोगों का बुरा हाल कर रखा है।
दलसुख उस माहौल को देखकर बड़े प्रभावित हुए और वेटर को एक चिट्ठी लिखकर देते हुए कहा कि इसे उस शख्स को दे देना, जो यह हंसी का माहौल बनाए हुए हैं। चिट्ठी पाकर ओमप्रकाश दलसुख पंचोली से मिलने पहुंचे तो उन्हें उनके करियर की पहली फिल्म 'दासी' के लिए 80 रुपए में साइन कर लिया गया था।

नूतन

नूतन पूरा नाम: नूतन समर्थ (४ जून १९३६ - २१ फ़रवरी १९९१) सामर्थ हिन्दी सिनेमा की सबसे प्रसिद्ध अदाकाराओं में से एक रही हैं। नूतन ने अपने फ़िल्मी जीवन की शुरुआत १९५० में की थी जब वह स्कूल में ही पढ़ती थीं।
 भारतीय सिनेमा जगत में नूतन को एक ऐसी अभिनेत्री के तौर पर याद किया जाता है जिन्होंने फ़िल्मों में अभिनेत्रियों के महज शोपीस के तौर पर इस्तेमाल किए जाने की परंपरागत विचार धारा को बदलकर उन्हें अलग पहचान दिलाई। सुजाता, बंदिनी, मैं तुलसी तेरे आंगन की, सीमा, सरस्वती चंद्र, और मिलन जैसी कई फ़िल्मों में अपने उत्कृष्ट अभिनय से नूतन ने यह साबित किया कि नायिकाओं में भी अभिनय क्षमता है और अपने अभिनय की बदौलत वे दर्शकों को सिनेमा हॉल तक लाने में सक्षम हैं
जीवन परिचय
नूतन का जन्म  4 जून, 1936 को एक पढ़े लिखे परिवार में हुआ था। इनकी माता का नाम श्रीमती शोभना समर्थ और पिता का नाम श्री कुमारसेन समर्थ था। घर में फ़िल्मी माहौल रहने के कारण नूतन अक्सर अपनी मां के साथ शूटिंग देखने जाया करती थी। इस वजह से उनका भी रुझान फ़िल्मों की ओर हो गया और वह भी अभिनेत्री बनने के ख्वाब देखने लगी।११ अक्तुबर १९५९ को नूतन ने लेफ़्टिनेंट कमांडर रजनीश बहल से विवाह कर लिया। नूतन के पुत्र मोहनीश बहल भी हिन्दी फ़िल्मों में अभिनय करते हैं। नूतन की बहन तनुजा और भतीजी  काजोल  भी हिन्दी सिनेमा की प्रसिद्ध अभिनेत्रियों में शामिल हैं। नूतन के अभिनय को हिन्दी फ़िल्म उद्दोग के सभी बडे नामों ने सराहा है और वह आज भी बहुत सी अदाकाराओं का आदर्श बनी हुई हैं।
सिने कैरियर की शुरूआत
नूतन ने बतौर बाल कलाकार फ़िल्म 'नल दमयंती' से अपने सिने कैरियर की शुरूआत की। इस बीच नूतन ने अखिल भारतीय सौंदर्य प्रतियोगिता में हिस्सा लिया जिसमें वह प्रथम चुनी गई लेकिन बॉलीवुड के किसी निर्माता का ध्यान उनकी ओर नहीं गया। बाद में अपनी मां और उनके मित्र मोतीलाल की सिफारिश की वजह से नूतन को वर्ष 1950 में प्रदर्शित फ़िल्म 'हमारी बेटी' में अभिनय करने का मौका मिला। इस फ़िल्म का निर्देशन उनकी मां शोभना समर्थ ने किया। इसके बाद नूतन ने 'हमलोग', 'शीशम', 'नगीना' और 'शवाब' जैसी कुछ फ़िल्मों में अभिनय किया लेकिन इन फ़िल्मों से वह कुछ ख़ास पहचान नहीं बना सकी।

'सीमा' से मिली पहचान

वर्ष 1955 में प्रदर्शित फ़िल्म 'सीमा' से नूतन ने विद्रोहिणी नायिका के सशक्त किरदार को रूपहले पर्दे पर साकार किया। इस फ़िल्म में नूतन ने सुधार गृह में बंद कैदी की भूमिका निभायी जो चोरी के झूठे इल्जाम में जेल में अपने दिन काट रही थी। फ़िल्म 'सीमा' में बलराज साहनी सुधार गृह के अधिकारी की भूमिका में थे। बलराज साहनी जैसे दिग्गज कलाकार की उपस्थित में भी नूतन ने अपने सशक्त अभिनय से उन्हें कड़ी टक्कर दी। इसके साथ ही फ़िल्म में अपने दमदार अभिनय के लिये नूतन को अपने सिने कैरियर का सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म अभिनेत्री का पुरस्कार भी प्राप्त हुआ

बहुआयामी प्रतिभा
नूतन ने देवानंद के साथ 'पेइंग गेस्ट' और 'तेरे घर के सामने' में नूतन ने हल्के-फुल्के रोल कर अपनी बहुआयामी प्रतिभा का परिचय दिया। वर्ष 1958 में प्रदर्शित फ़िल्म सोने की चिडि़या के हिट होने के बाद फ़िल्म इंडस्ट्री में नूतन के नाम के डंके बजने लगे और बाद में एक के बाद एक कठिन भूमिकाओं को निभाकर वह फ़िल्म इंडस्ट्री में स्थापित हो गई। वर्ष 1958 में प्रदर्शित फ़िल्म 'दिल्ली का ठग' में नूतन ने स्विमिंग कॉस्टयूम पहनकर उस समय के समाज को चौंका
दिया। फ़िल्म बारिश में नूतन काफ़ी बोल्ड दृश्य दिए जिसके लिए उनकी काफ़ी आलोचना भी हुई लेकिन बाद में विमल राय की फ़िल्म 'सुजाता' एवं 'बंदिनी' में नूतन ने अत्यंत मर्मस्पर्शी अभिनय कर अपनी बोल्ड अभिनेत्री की छवि को बदल दिया। सुजाता, बंदिनी और दिल ने फिर याद किया जैसी फ़िल्मों की कामयाबी के बाद नूतन ट्रेजडी क्वीन कही जाने लगी। अब उनपर यह आरोप लगने लगा कि वह केवल दर्द भरे अभिनय कर सकती हैं लेकिन छलिया और सूरत जैसी फ़िल्मों में अपने कॉमिक अभिनय कर नूतन ने अपने आलोचकों का मुंह एक बार फिर से बंद कर दिया। वर्ष 1965 से 1969 तक नूतन ने दक्षिण भारत के निर्माताओं की फ़िल्मों के लिए काम किया। इसमें ज्यादातर सामाजिक और पारिवारिक फ़िल्में थी। इनमें गौरी, मेहरबान, खानदान, मिलन और भाई बहन जैसी सुपरहिट फ़िल्में शामिल है।

फ़िल्म 'सुजाता' और 'बंदिनी'

विमल राय की फ़िल्म 'सुजाता' एवं 'बंदिनी' नूतन की यादगार फ़िल्में रही। वर्ष 1959 में प्रदर्शित फ़िल्म सुजाता नूतन के सिने कैरियर के लिए मील का पत्थर साबित हुई। फ़िल्म में नूतन ने अछूत कन्या के किरदार को रूपहले पर्दे पर साकार किया1 इसके साथ ही फ़िल्म में अपने दमदार अभिनय के लिये वह अपने सिने कैरियर में दूसरी बार फ़िल्म फेयर पुरस्कार से सम्मानित की गई। वर्ष 1963 में प्रदर्शित फ़िल्म 'बंदिनी 'भारतीय सिनेमा जगत में अपनी संपूर्णता के लिए सदा याद की जाएगी। फ़िल्म में नूतन के अभिनय को देखकर ऐसा लगा कि केवल उनका चेहरा ही नहीं बल्कि हाथ पैर की उंगलियां भी अभिनय कर सकती है। इस फ़िल्म में अपने जीवंत अभिनय के लिये नूतन को एक बार फिर से सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का फ़िल्म फेयर पुरस्कार भी प्राप्त हुआ। इस फ़िल्म से जुड़ा एक रोचक पहलू यह भी है फ़िल्म के निर्माण के पहले फ़िल्म अभिनेता अशोक कुमार की निर्माता विमल राय से अनबन हो गई थी और वह किसी भी कीमत पर उनके साथ काम नहीं करना चाहते थे लेकिन वह नूतन ही थी जो हर कीमत में अशोक कुमार को अपना नायक बनाना चाहती थी। नूतन के जोर देने पर अशोक कुमार ने फ़िल्म 'बंदिनी' में काम करना स्वीकार किया था।
नूतन और उनके नायक
नूतन ने अपने सिने कैरियर में उस दौर के सभी दिग्गज और नवोदित अभिनेताओं के साथ अभिनय किया। राजकपूर के साथ फ़िल्म 'अनाड़ी' में भोला-भाला प्यार हो या फिर अशोक कुमार के साथ फ़िल्म 'बंदिनी' में संजीदा अभिनय या फिर पेइंग गेस्ट में देवानंद के साथ छैल छबीला रोमांस हो नूतन हर अभिनेता के साथ उसी के रंग में रंग जाती थी। वर्ष 1968 में प्रदर्शित फ़िल्म 'सरस्वती चंद्र' की अपार सफलता के बाद नूतन फ़िल्म इंडस्ट्री की नंबर वन नायिका के रूप मे स्थापित हो गई। वर्ष 1973 में फ़िल्म 'सौदागार' में अमिताभ बच्चन जैसे नवोदित अभिनेता के साथ काम करके नूतन ने एक बार फिर से अपना अविस्मरणीय अभिनय किया। अस्सी के दशक में नूतन ने चरित्र भूमिकाएं निभानी शुरू कर दी और कई फ़िल्मों में मां के किरदार को रुपहले पर्दे पर साकार किया। इन फ़िल्मों में 'मेरी जंग', 'नाम' और 'कर्मा' जैसी ख़ास तौर पर उल्लेखनीय है। फ़िल्म 'मेरी जंग' के लिए अपने सशक्त अभिनय के लिए नूतन सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेत्री के पुरस्कार से सम्मानित की गई। फ़िल्म 'कर्मा' में नूतन ने अभिनय सम्राट दिलीप कुमार के साथ काम किया। इस फ़िल्म में नूतन पर फ़िल्माया यह गाना दिल दिया है जाँ भी देंगे ऐ वतन तेरे लिए.. श्रोताओं के बीच काफ़ी लोकप्रिय हुआ।
सम्मान और पुरस्कार
नूतन के सौन्दर्य को मिस इंडिया पुरस्कार से सम्मानित किया गया। वह इस पुरस्कार को पाने वाली पहली महिला थीं। नूतन की प्रतिभा केवल अभिनय तक ही नहीं सीमित थी वह गीत और ग़ज़ल लिखने में भी काफ़ी दिलचस्पी लिया करती थीं। हिंदी फ़िल्म इंडस्ट्री में बतौर सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री सर्वाधिक फ़िल्म फेयर पुरस्कार प्राप्त करने का कीर्तिमान नूतन के नाम दर्ज है। नूतन को अपने सिने कैरियर में पांच बार (सुजाता, बंदिनी, मैं तुलसी तेरे आंगन की, सीमा, मिलन) फ़िल्म फेयर पुरस्कार से सम्मानित किया गया। नूतन को वर्ष 1974 में भारत सरकार द्वारा पद्म श्री से सम्मानित किया गया।
नूतन ने ५० से भी अधिक फ़िल्मों में काम किया और उन्हे बहुत से अन्य पुरस्कारों के अलावा ६ बार फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार मिला (जो कि अभी तक किसी भी दूसरी अभिनेत्री से अधिक है)। जिन फ़िल्मों के लिये नूतन को फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार मिले, उनकी सूची इस प्रकार है
·         सन १९५५ : सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री : सीमा
·         सन १९५९ : सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री : सुजाता
·         सन १९६३ : सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री : बंदिनी
·         सन १९६७ : सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री : मिलन
·         सन १९७८ : सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री : मैं तुलसी तेरे आंगन की
·         सन १९५९ : सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेत्री : मेरी जंग 
निधन

लगभग चार दशक तक अपने सशक्त अभिनय से दर्शकों के बीच ख़ास पहचान बनाने वाली यह महान अभिनेत्री 21 फ़रवरी, 1991 को इस दुनिया से अलविदा कह गई।