Tuesday 30 June 2020

भारतनेट परियोजना

‘उद्योग और आंतरिक व्यापार संवर्द्धन विभाग’ (Department for Promotion of Industry and Internal Trade- DPIIT) द्वारा तमिलनाडु में ‘भारतनेट परियोजना’ (Bharat Net project) की 1,950 करोड़ रूपए की निविदाओं को रद्द करने का आदेश दिये गए हैं।

प्रमुख बिंदु:

  • चेन्नई की एंटी करप्शन गैर सरकारी संगठन ‘अय्यक्कम’द्वारा निविदा में अनियमितताओं को उजागर किया गया, जिसके चलते केंद्र सरकार द्वारा तमिलनाडु में 1,950 करोड़ रुपए की भारत नेट प्रोजेक्ट की निविदाओं को रद्द कर दिया गया है।
  • तमिलनाडु में इस परियोजना को तमिलनाडु फाइबरनेट कॉर्पोरेशन (Tamil Nadu FiberNet Corporation- TANFINET) के माध्यम से संचालित किया जाना है।
  • गैर सरकारी संगठन द्वारा आरोप लगाया गया कि TANFINET द्वारा जारी निविदाओं की शर्तों के कारण केवल कुछ ही कंपनियाँ आवदेन की पात्र हैं।

भारत नेट परियोजना:

  • भारत नेट परियोजना का उद्देश्य ऑप्टिकल फाइबर (Optical Fiber) के माध्यम से भारतीय गाँवों को उच्च गति ब्रॉडबैंड कनेक्शन से जोड़ना है।
  • तमिलनाडु में इस परियोजना के माध्यम से राज्य के सभी 12,524 ग्राम पंचायतों को जोड़ने की योजना थी।
  • भारतनेट क्या है?

    • भारत नेट परियोजना का नाम पहले ओएफसी नेटवर्क (Optical Fiber Communication Network) था।
    • भारतनेट परियोजना के तहत 2.5 लाख से अधिक ग्राम पंचायतों को ऑप्टिकल फाइबर के ज़रिये हाईस्पीड ब्रॉडबैंड, किफायती दरों पर उपलब्ध कराया जाना है।
    • इसके तहत ब्रॉडबैंड की गति 2 से 20 mbps तक होगी।
    • इसके तहत ज़िला स्तर पर भी सरकारी संस्थानों के लिये ब्रॉडबैंड कनेक्टिविटी उपलब्ध कराने का प्रस्ताव है।
    • इस परियोजना का वित्तपोषण यूनिवर्सल सर्विस ऑब्लिगेशन फंड (Universal Service Obligation Fund-USOF) द्वारा किया जा रहा है।
    • इस परियोजना का उद्देश्य राज्यों तथा निजी क्षेत्र की हिस्सेदारी से ग्रामीण तथा दूर-दराज़ के क्षेत्रों में नागरिकों एवं संस्थानों को सुलभ ब्रॉड बैंड सेवाएँ उपलब्ध कराना है।
    • इस परियोजना के तहत ब्रॉडबैंड को ऑप्टिकल फाइबर के ज़रिये पहुँचाया जाएगा, लेकिन जहाँ ऑप्टिकल फाइबर पहुँचाना संभव नहीं हो, वहाँ वायरलैस एवं सैटेलाइट नेटवर्क का इस्तेमाल किया जाएगा।
    • गाँवों में इंटरनेट पहुँचाने के बाद निजी सेवा प्रदाताओं को भी मौके दिये जाएंगे ताकि वे विभिन्न प्रकार की सेवाएँ मुहैया करा सकें।
    • स्कूलों, स्वास्थ्य केंद्रों एवं कौशल विकास केंद्रों में इंटरनेट कनेक्शन नि:शुल्क प्रदान किये जाएंगे।
    • भारतनेट के पहले चरण में देश के कई राज्यों की एक लाख से अधिक ग्राम पंचायतों में ऑप्टिकल फाइबर कनेक्टिविटी उपलब्ध कराई गई है।
    • भारतनेट परियोजना के दूसरे चरण के तहत मार्च 2019 तक 2.5 लाख ग्राम पंचायतों में हाई स्पीड ब्रॉड बैंड का लक्ष्य है।

परियोजना के चरण:

  • प्रथम चरण में, अंडरग्राउंड ऑप्टिक फाइबर केबल लाइनों के माध्यम से ब्रॉडबैंड कनेक्टिविटी को एक लाख ग्राम पंचायतों तक उपलब्ध कराया गया है।
  • इस चरण को दिसंबर, 2017 तक पूरा कर लिया गया है।
  • द्वितीय चरण में , भूमिगत फाइबर, पावर लाइनों, रेडियो और उपग्रह मीडिया पर फाइबर के इष्टतम मिश्रण का उपयोग करके देश में सभी 1.5 लाख ग्राम पंचायतों को कनेक्टिविटी प्रदान की जाएगी।
  • चरण-2 के सफलतापूर्वक क्रियान्वयन के लिये , बिजली के ध्रुवों/खंभों पर ऑप्टिक फाइबर केबल को भी लगाया गया है।
  • इस परियोजना का तीसरा चरण वर्ष 2019 से वर्ष 2023 तक पूर्ण होना है।
  • इस चरण में अत्याधुनिक, फ्यूचर प्रूफ नेटवर्क, ज़िलों एवं ब्लॉकस के बीच फाइबर समेत, अवरोध को समाप्त करने के लिये नेटवर्क को रिंग टोपोलॉजी के आधार पर स्थापित किया जाना है।

ऑप्टिकल फाइबर:

  • ऑप्टिकल फाइबर मुख्यत: सिलिका से बनी पतली बेलनाकार नलिकाएँ होती हैं जो प्रकाश के पूर्ण आंतरिक परावर्तन के सिद्धांत पर कार्य करती हैं।
  • ऑप्टिकल फाइबर में प्रकाश का उपयोग कर डेटा को ट्रांसफर किया जाता है।ऑप्टिकल फाइबर में बिजली का संचार नहीं बल्कि प्रकाश का संचार होता है। अतः इनमें प्रकाश के रूप में जानकारी का प्रवाह होता है।
  • ऑप्टिकल फाइबर में जहाँ डेटा को रिसीव किया जाता है वहाँ एक ट्रांसमीटर लगा होता है।
  • यह ट्रांसमीटर इलेक्ट्रॉनिक पल्स इनफार्मेशन को सुलझाता है तथा इसको प्रोसेस करके लाइट पल्स के रूप में ऑप्टिकल फाइबर लाइन में ट्रांसमिट कर देता है।

भारतनेट परियोजना का महत्त्व:

  • भारतनेट परियोजना विश्व की सबसे बड़ी ग्रामीण ब्रॉडबैंड संपर्क परियोजना है।
  • इस परियोजना को ‘मेक इन इंडिया’ के तहत कार्यान्वित किया जा रहा है अतः देश में ही रोज़गार के नए अवसर विकसित होंगे।
  • इस प्रोजेक्ट के माध्यम से ग्रामीण क्षेत्रों में संचरण सुविधा बिना किसी नेटवर्क बाँधा के उपलब्ध कराई जा रही है।
  • परियोजना में राज्य और निजी क्षेत्रों के साथ साझेदारी करके अब ग्रामीण और दूरदराज क्षेत्रों में नागरिकों/लोगों को सस्ती ब्रॉडबैंड सेवाएँ प्राप्त हो सकेगी।

नरसिम्हा राव: आर्थिक सुधारों के अग्रदूत

तेलंगाना सरकार ने पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव (PV Narashima Rao) की जन्मशती के अवसर पर वर्ष भर चलने वाले समारोह की शुरुआत की है।

प्रमुख बिंदु

  • समारोह की शुरुआत करते हुए राज्य के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव (K Chandrasekhar Rao) ने कहा कि नरसिम्हा राव बहुमुखी व्यक्तित्व के धनी थे और यह समारोह नरसिम्हा राव के संपूर्ण व्यक्तित्व को उजागर करने में मदद करेगा।
  • इसी के साथ ही राज्य के मुख्यमंत्री ने पीवी नरसिम्हा राव के लिये भारत रत्न की भी मांग की।
  • ध्यातव्य है कि नरसिम्हा राव की कांस्य प्रतिमाओं को तेलंगाना के करीमनगर, वारंगल और हैदराबाद में तथा नई दिल्ली स्थित तेलंगाना भवन में स्थापित किया जाएगा।

पीवी नरसिम्हा राव- प्रारंभिक जीवन

  • पामुलापति वेंकट नरसिंह राव का जन्म 28 जून, 1921 को तत्कालीन आंध्रप्रदेश के करीमनगर ज़िले के एक गाँव में हुआ था, जो कि वर्तमान में तेलंगाना राज्य का एक क्षेत्र है।
  • नरसिम्हा राव ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा करीमनगर ज़िले के स्थानीय विद्यालय से पूरी की, जिसके पश्चात् उन्होंने हैदराबाद स्थित उस्मानिया विश्वविद्यालय (Osmania University) में दाखिला लिया और वहाँ से स्नातक की डिग्री प्राप्त की।
  • स्नातक की पढ़ाई पूरी करने के बाद, नरसिम्हा राव उच्च अध्ययन की ओर अग्रसर हुए और उन्होंने हिसलोप कॉलेज (Hislop Colleg) से विधि में मास्टर डिग्री पूरी की।
  • पीवी नरसिम्हा राव को एक सक्रिय छात्र नेता के रूप में भी जाना जाता था, जहाँ उन्होंने पूर्ववर्ती आंध्रप्रदेश के विभिन्न इलाकों में कई सत्याग्रह आंदोलनों की अगुवाई की। नरसिम्हा राव हैदराबाद में 1930 के दशक में हुए ‘वंदे मातरम आंदोलन’ (Vande Mataram Movement) के एक सक्रिय भागीदार भी थे।
  • नरसिम्हा राव को उनके अभूतपूर्व भाषाई कौशल के लिये भी जाना जाता था, उन्हें 10 भारतीय भाषाओं के साथ-साथ 6 विदेशी भाषाओं महारत हासिल थी।

नरसिम्हा राव की राजनीतिक यात्रा

  • नरसिम्हा राव ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत अपने छात्र जीवन के दौरान ही की थी, बहुभाषी के रूप में उनकी क्षमताओं ने उन्हें स्थानीय जनता के साथ जुड़ने में काफी मदद की।
  • वर्ष 1947 में भारतीय स्वतंत्रता के बाद, नरसिम्हा राव आधिकारिक तौर पर भारतीय राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस से जुड़ गए।
  • नरसिम्हा राव ने वर्ष 1962 से वर्ष 1971 के दौरान आंध्र सरकार में विभिन्न मंत्री पदों पर कार्य किया, इसके पश्चात् उन्होंने वर्ष 1971 से वर्ष 1973 तक तत्कालीन आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री की ज़िम्मेदारी संभाली।
  • पीवी नरसिम्हा राव के नेतृत्त्व में आंध्र प्रदेश में कई भूमि सुधार किये गए, विशेष रूप से मौजूदा तेलंगाना के क्षेत्र में।
  • वर्ष 1991 में राजीव गांधी की हत्या के बाद नरसिम्हा राव देश के नए प्रधानमंत्री बने और उन्होंने वर्ष 1996 तक देश के 9वें प्रधानमंत्री के रूप में अपनी सेवाएँ दीं।
  • पीवी नरसिम्हा राव का 9 दिसंबर, 2004 को हार्टअटैक के कारण निधन हो गया।

प्रधानमंत्री के रूप में नरसिम्हा राव

  • प्रधानमंत्री के तौर पर नरसिम्हा राव को मुख्य रूप से उनके द्वारा किये गए सुधारों के रूप में पहचाना जाता है। प्रधानमंत्री के रूप में पीवी नरसिम्हा राव के सबसे महत्त्वपूर्ण निर्णयों में से एक वित्त मंत्री के रूप में एक गैर-राजनीतिक उम्मीदवार की नियुक्ति को माना जाता है।
  • डॉ. मनमोहन सिंह की विशेषज्ञता के तहत पीवी नरसिम्हा राव की सरकार ने मुख्य रूप से निम्नलिखित निर्णय लिये:
    • सेबी अधिनियम 1992 (Securities and Exchange Board of India Act, 1992) और प्रतिभूति कानून (संशोधन) की शुरुआत हुई, जिसके माध्यम से SEBI को सभी प्रतिभूति बाज़ार मध्यस्थों को पंजीकृत और विनियमित करने का कानूनी अधिकार प्राप्त हुआ।
    • वर्ष 1992 में पूंजी निर्गम नियंत्रक (Controller of Capital Issues) निकाय को समाप्त कर दिया गया, जो कि कंपनियों द्वारा जारी किये जा सकने वाले शेयरों की कीमतें और संख्या तय किया करता था।
    • वर्ष 1992 में ही विदेशी संस्थागत निवेशकों के लिये भारत के इक्विटी बाज़ारों को खोल दिया गया, साथ ही भारतीय कंपनियों को ग्लोबल डिपॉज़िटरी रिसिप्ट (Global Depository Receipts-GDRs) जारी करके अंतर्राष्ट्रीय बाज़ारों से पूंजी जुटाने की अनुमति देना।
    • वर्ष 1994 में कंप्यूटर आधारित व्यापार प्रणाली के रूप में नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (National Stock Exchange-NSE) की शुरुआत की गई। ध्यातव्य है कि NSE वर्ष 1996 तक भारत के सबसे बड़े एक्सचेंज के रूप में उभरने लगा।
    • संयुक्त उद्यमों में विदेशी पूंजी की हिस्सेदारी पर अधिकतम सीमा को 40 प्रतिशत से बढ़ाकर 51 प्रतिशत करके प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (Foreign Direct Investment - FDI) को प्रोत्साहित किया गया।
    • नई आर्थिक नीति के अलावा पीवी नरसिम्हा राव ने शीत युद्ध के बाद देश की कूटनीतिक नीति (Diplomacy Policy) को एक नया आकार देने में भी एक महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की थी।
    • नरसिम्हा राव के कार्यकाल में ही भारत की ‘लुक ईस्ट’ नीति (Look East’ Policy) की भी शुरुआत हुई, जिसके माध्यम से भारत के व्यापार की दिशा को दक्षिण पूर्व एशियाई राष्ट्रों की ओर किया गया।

1946 नौसेना विद्रोह

18 फरवरी, 1946 को तकरीबन 1,100 भारतीय नाविकों या HMIS तलवार के जहाज़ियों और रॉयल इंडियन नेवी (Royal Indian Navy-RIN) ने भूख हड़ताल की घोषणा की, जो कि नौसेना में भारतीयों की स्थितियों और उनके साथ व्यवहार से प्रभावित थी। इस हड़ताल को एक “स्लो डाउन’ हडताल भी कहा जाता है, जिसका अर्थ था कि जहाज़ी अपने कर्तव्यों को धीरे-धीरे पूरा करेंगे।

  • HMIS तलवार के कमांडर, F M किंग ने कथित तौर पर नौसैनिक जहाज़ियों को गाली देते हुए संबोधित किया, जिसने इस स्थिति को और भी आक्रामक रूप दे दिया।

1946 नौसेना विद्रोह: हड़ताल और मांग

  • 18 फरवरी को शुरू हुई इस हड़ताल में धीरे धीरे तकरीबन 10,000-20,000 नाविक शामिल हो गए, इसका कारण यह था कि कराची, मद्रास, कलकत्ता, मंडपम, विशाखापत्तनम और अंडमान द्वीप समूह में स्थापित बंदरगाहों के चलते एक बड़ा वर्ग इस हड़ताल के प्रभाव में आ गया।
  • हालाँकि इस हड़ताल की तत्काल मांग बेहतर भोजन और काम करने की स्थिति भर थी, लेकिन इस आंदोलन को ब्रिटिश शासन से स्वतंत्रता की व्यापक मांग में परिवर्तित होने में ज़्यादा वक्त नहीं लगा और देखते ही देखते इसने व्यापक रूप धारण कर लिया।

Indian-Sailors

  • जल्द ही प्रदर्शनकारी नाविक नेताजी सुभाष चंद्र बोस की भारतीय राष्ट्रीय सेना (INA) के सभी राजनीतिक कैदियों की रिहाई, कमांडर F M किंग द्वारा दुर्व्यवहार और अपमानजनक भाषा का उपयोग करने के चलते कार्यवाही, RIN के कर्मचारियों के वेतन एवं भत्ते को उनके समकक्ष अंग्रेज़ कर्मचारियों के सममूल्य रखने, इंडोनेशिया में तैनात भारतीय बलों की रिहाई, और अधिकारियों द्वारा अधीनस्थों के साथ बेहतर व्यहार करने जैसे मुद्दों की मांग करने लगे।

1946 नौसेना विद्रोह: राष्ट्रवाद का उत्थान

  • RIN हड़ताल ऐसे समय में हुई जब देश भर में भारतीय राष्ट्रवादी भावना अपने चरम पर पहुँच गई थी। 1945-46 की सर्दियों में तीन हिंसक उतार-चढ़ाव देखने को मिले: नवंबर 1945 में कलकत्ता में INA के अधिकारियों के मामले की सुनवाई; फरवरी 1946 में दोबारा कलकत्ता में ही आईएनए अधिकारी राशिद अली को सज़ा और इसी महीने बॉम्बे में नौसेनिक विद्रोह।
  • इस हड़ताल को उस समय झटका लगा जब RIN के एक जहाज़ी बीसी दत्त को गिरफ्तार कर लिया गया, जिसने HMIS तलवार पर ‘भारत छोड़ो’ का नारा दिया था। हड़ताल शुरू होने के अगले दिन से ही जहाजियों ने बॉम्बे के आसपास के क्षेत्रों में गाड़ियों में बैठकर प्रदर्शन करना शुरू कर दिया, उन्होंने कांग्रेस का झंडा लहराते हुए प्रदर्शन किया।
  • जल्द ही आम जन भी इन जहाजियों के साथ शामिल हो गए, इसके चलते बंबई और कलकत्ता दोनों में एक आभासी गतिरोध उत्पन्न हो गया। दोनों शहरों में अनगिनत बैठकें, जुलूस और हड़ताल हुई। बंबई में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी और बॉम्बे स्टूडेंट्स यूनियन के आह्वाहन पर मज़दूरों ने एक आम हड़ताल में भाग लिया। देश भर के कई शहरों में छात्रों ने एकजुटता का प्रदर्शन करते हुए कक्षाओं का बहिष्कार किया।
  • इन हड़तालों और प्रदर्शनों के संबंध में राज्य की प्रतिक्रिया काफी क्रूर थी। एक अनुमान के अनुसार, पुलिस की गोलीबारी में 220 से अधिक लोग मारे गए, जबकि लगभग 1,000 घायल हुए।

विद्रोह के संबंध में कांग्रेस का रुख

  • आम तौर पर इतिहासकारों का मानना ​​है कि विद्रोहियों को न तो कांग्रेस और न ही मुस्लिम लीग का समर्थन मिला। हड़तालियों ने बंबई में एक शहर-व्यापी हड़ताल का आह्वान किया।
  • 22 फरवरी तक शहर का एक बड़ा हिस्सा हड़ताल से प्रभावित हो चुका था, हालाँकि शहर के विभिन्न स्थानों पर हिंसक घटनाएँ घटित हुई।

घटनाओं का महत्त्व

  • RIN विद्रोह आज एक किंवदंती बना हुआ है। यह एक ऐसी घटना थी जिसने ब्रिटिश शासन के अंत को देखने के भारतीय लोगों के दृढ़ संकल्प को मज़बूती प्रदान की। यह विद्रोह धार्मिक समूहों के बीच गहरी एकजुटता और सौहार्द का प्रमाण था, जो उस समय देश में फैलती साम्प्रदायिक घृणा और वैमनस्यता के प्रतिउत्तर के रूप में प्रस्तुत हुआ। हालाँकि दुखद बात यह है कि यह ऐसा समय था जब दो प्रमुख समुदायों के बीच एकता की तुलना में सांप्रदायिक एकता प्रकृति में अधिक संगठनात्मक थी। इसकी परिणति कुछ ही महीनों के भीतर नज़र भी आ गई, भारत इतिहास के एक बेहद भयानक सांप्रदायिक संघर्ष का गवाह बना।

गाइनान्ड्रोमॉर्फ्स

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ये नर तथा मादा ऊतकों वाले जीव होते है, तथा इन्हें वैज्ञानिक समुदाय द्वारा आनुवंशिक विपथन के रूप में देखा जाता है।

सामान्यतः नर और मादा जीवों में उनके उतकों के वितरण के कारण विषमता पाई जाती है लेकिन किसी एक जीव में दोनों विशेषताओं का एक साथ पाया जाना गाइनान्ड्रोमॉर्फी (Gynandromorphism) कहा जाता है।

यह क्रस्टेशिया (Crustacea) और एरेक्निडा (Arachnida) जैसे कुछ संधिपाद प्राणीयों में सामान्य रूप से पाई जाती है।

चर्चा का कारण

शोधकर्ताओं ने भारत की लिबेलुलिड ड्रैगनफ्लाई क्रोकोथेमिस सर्विलिया (Libellulid Dragonfly Crocothemis Servilia) में गाइनान्ड्रोमॉर्फी (Gynandromorphism) का पता लगाया है।

मछली पकड़ने वाली बिल्लियां

चर्चा का कारण

ओडिशा सरकार ने भितरकणिका राष्ट्रीय उद्यान में दो वर्ष के लिए मछली पकड़ने वाली बिल्लियों के लिए संरक्षण परियोजना शुरू की है।

प्रमुख तथ्य:

मछली पकड़ने वाली बिल्ली रात्रिचर (Nocturnal) जीव है।

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यह पश्चिम बंगाल का राज्य पशु है।

पर्यावास: भारत में, गंगा और ब्रह्मपुत्र नदी की घाटियों और पश्चिमी घाटों में हिमालय की तलहटी में सुंदरवन के मैंग्रोव जंगलों में मछली पकड़ने वाली बिल्लियाँ मुख्य रूप से पाई जाती हैं।

संरक्षण स्थिति:

  1. IUCN लाल सूची में असुरक्षित (Vulnerable) के रूप में सूचीबद्ध।
  2. CITES की परिशिष्ट II में सूचीबद्ध।
  3. भारतीय वन्यजीव संरक्षण अधिनियम1972: अनुसूची I में सूचीबद्ध।

संकल्प पर्व

  • संस्कृति मंत्रालय पेड़ लगाने के लिए 28 जून से 12 जुलाई 2020 तक ‘संकल्प पर्व’ का आयोजन कर रहा है।
  • संस्कृति मंत्रालय द्वारा उन पांच पेड़ों को लगाए जाने को प्राथमिकता दे रहा है, जो हमारे देश की हर्बल विरासत का सटीक प्रतिनिधित्व करते हैं।
  • ये पेड़ हैं – (i) ‘बरगद’ (ii) ‘आंवला’ (iii) ‘पीपल’ (iv) ‘अशोक’ (v) ‘बेल’।

मारीच (Maareech)

यह एक स्वदेश निर्मित उन्नत ‘टॉरपीडो डेकॉय प्रणाली’ (Torpedo Decoy System) है जिसे सभी फ्रंटलाइन जहाजों से प्रक्षेपित किया जा सकता है।

  • इसे हाल ही में भारतीय नौसेना द्वारा अपने बेड़े में शामिल किया गया है।
  • इसे रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) द्वारा स्वदेशी रूप से डिजाइन और विकसित किया गया है।
  • यह अपनी ओर आने वाले टॉरपीडो खोजने तथा बेअसर करने में सक्षम है।

एंथ्रोपोज़ क्या है?

एंथ्रोपोज़ (Anthropause), ब्रिटेन में शोधकर्ताओं द्वारा गढ़ा गया एक शब्द है। यह दो शब्दों, एंथ्रोपो (Anthropo) अर्थात् मनुष्य से संबंधित और पॉज (Pause) अर्थात् ठहराव से मिलकर बना है।

इसे ‘ग्रेट पॉज़’ (Great Pause) के रूप में भी जाना जाता है।

यह COVID-19 से प्रेरित लॉकडाउन अवधि तथा अन्य प्रजातियों पर इसके प्रभाव को संदर्भित करता है।

इस अवधि में लगाये गए प्रतिबंधो के कारण असामान्य पशु व्यवहार

लॉकडाउन के दैरान कई स्थानों पर वन्यजीवों में असामान्य व्यवहार की प्रवृत्ति देखी गई; जैसे चिली के सैंटियागो में प्यूमा (Pumas), तेल अवीव (इज़राइल) के शहरी पार्कों में दिन के समय सियार, इटली के पास शांत जल में डॉल्फिन को, तथा थाईलैंड की सड़कों पर बंदरों की बंदर लड़ाई।

इस अवधि के अध्ययन का कारण

लॉकडाउन के परिणामस्वरूप, प्रकृति में अभूतपूर्व परिवर्तन हुए है। विशेषकर शहरी वातावरण में, अब अधिक जानवर देखे जा रहे हैं तथा साथ ही कुछ “अप्रत्याशित जीव” भी देखे गए हैं।

वहीं, दूसरी ओर कुछ जीवों के लिए लॉकडाउन ने स्थितियों को और जटिल तथा चुनौतीपूर्ण बना दिया है।

  • उदाहरणार्थ: शहरी आवास वाले जीव-जंतुओं जैसे चूहे, और बंदरों के लिये, जो मनुष्यों द्वारा प्रदान किये गए भोजन पर निर्भर होते है, लॉकडाउन ने उनका जीवन अधिक कठिन एवं चुनौतीपूर्ण बना दिया है।

शोधकर्ताओं का मानना ​​है कि 21वीं सदी में इस लॉकडाउन अवधि का अध्ययन मानव-वन्यजीव संबंधों के लिये एक मूल्यवान अंतर्दृष्टि प्रदान करेगा।

यह वैश्विक जैव विविधता (Global Biodiversity) के संरक्षण, पारिस्थितिकी तंत्र की अखंडता (Integrity of Ecosystems) बनाए रखने तथा वैश्विक स्तर पर ज़ूनोसिस रोग एवं पर्यावरणीय परिवर्तनों की भविष्यवाणी करने में भी उपयोगी हो सकता है।

सांख्यिकी दिवस

प्रतिवर्ष 29 जून को मनाया जाता है।

सांख्यिकी दिवस को प्रो. पी सी महालानोबिस की जयंती पर, राष्ट्रीय सांख्यिकी संबंधी प्रणाली की स्थापना करने में उनके अमूल्य योगदान के सम्मान में मनाया जाता है।

विषय (Theme)

इस वर्ष का थीम है: SDG- 3 (स्वस्थ जीवन सुनिश्चित करें एवं सभी उम्रों के लिए कल्याण को बढ़ावा दें) & SDG- 5 (लैंगिक समानता हासिल करें और सभी महिलाओं तथा लड़कियों को अधिकार संपन्न बनायें)।“

पीसी महालनोनोबिस का सांख्यिकी में योगदान (1893-1972):

  1. उन्हें भारतीय सांख्यिकीय प्रणाली के मुख्य वास्तुकार और भारत में सांख्यिकीय विज्ञान के पिता के रूप में जाना जाता है।
  2. उन्होंने 1931 में कोलकाता में भारतीय सांख्यिकी संस्थान (Indian Statistical InstituteISI) की स्थापना की।
  3. संस्थान ने कार्ल पियर्सन की बायोमेट्रिका (Biometrika) की तर्ज पर सांख्य पत्रिका का प्रकाशन आरंभ किया।
  4. 1959 में ISI को सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय के अधीन एक स्वायत्त संस्था बनाया गया था।
  5. उन्होंने केंद्रीय सांख्यिकी संगठन (CSO), नेशनल सैंपल सर्वे (NSS) और एनुअल सर्वे ऑफ़ इंडस्ट्रीज (ASI) की स्थापना में भी मदद की।
  6. उन्होंने सांख्यिकीय प्रतिरूपों पर संयुक्त राष्ट्र उप-आयोग के अध्यक्ष के रूप में भी कार्य किया।
  7. 1936 में उन्होंने महालनोबिस दूरी नाम का एक सांख्यिकीय पद्यति प्रस्तुत की। इसका व्यापक रूप से क्लस्टर विश्लेषण और वर्गीकरण तकनीकों में उपयोग किया जाता है।
  8. महालनोबिस मॉडल को द्वितीय पंचवर्षीय योजना में लागू किया गया था, जिसने भारत में तेजी से औद्योगिकीकरण की दिशा में वृद्धि हेतु कार्य किया।

MSME वर्गीकरण और पंजीकरण हेतु समेकित अधिसूचना

हाल ही में, सूक्ष्मलघु और मध्यम उद्यम (Micro Small and Medium Enterprises- MSME) मंत्रालय द्वारा, 1 जुलाई, 2020 से प्रभावी होने वाली ‘MSME वर्गीकरण और पंजीकरण हेतु समेकित अधिसूचना’ जारी की गयी है।

यह अधिसूचना MSME के वर्गीकरण या पंजीकरण के संबंध में पूर्व में जारी की गई सभी अधिसूचनाओं का स्‍थान लेगी।

प्रमुख बिंदु:

  1. अधिसूचना के अनुसार, इसके बाद, एक MSME को उद्यम के नाम से जाना जाएगा, क्योंकि यह एंटरप्राइज़ शब्द के अधिक करीब है। फलस्‍वरूप, पंजीकरण की प्रक्रिया को उदयम पंजीकरण के नाम से जाना जाएगा।
  2. उद्यम पंजीकरण स्व-घोषणा के आधार पर ऑनलाइन कराया जा सकता है। इसके लिए किसी दस्तावेज, कागजात, प्रमाण पत्र या प्रमाण को अपलोड करने की आवश्यकता नहीं है।
  3. MSME वर्गीकरण के लिए बुनियादी मानदंड, संयंत्र और मशीनरी या उपकरण में निवेश और ‘कारोबार’ होंगे।
  4. किसी भी उद्यम चाहे सूक्ष्‍म, लघु अथवा मध्‍यम हो, उसके कारोबार की गणना करते समय वस्तुओं या सेवाओं या दोनों के निर्यात को बाहर रखा जाएगा;
  5. मंत्रालय ने देश भर में चैंपियंस कंट्रोल रूम को पहल के अंतर्गत पंजीकरण और इसके बाद भी उद्यमियों को सुविधा प्रदान करने के लिए कानूनी रूप से जवाबदेह बनाया है।

नए वर्गीकरण के अनुसार:

  1. सूक्ष्म उद्यम: एक करोड़ रुपये से अधिक का निवेश नहीं होगा और 5 करोड़ रुपये का कारोबार होगा।
  2. लघु उद्यम: 10 करोड़ रुपये तक का निवेश और 50 करोड़ रुपये तक का कारोबार।
  3. मध्यम उद्यम: – 50 करोड़ रुपये से अधिक निवेश तथा 250 करोड़ रुपये तक का कारोबार।

महत्व तथा निहितार्थ

यह उपाय MSMEs के कार्य-प्रणाली को पूरी तरह से परिवर्तित कर, यह विश्व स्तर पर MSME  के प्रतिस्पर्धा सुनिश्चित करेंगे।

महामारी नियंत्रण के तुरंत बाद ही, प्रोत्साहन पैकेज के साथ, ये उद्यम तेजी से -आकार की अर्थव्यवस्था बहाली की स्थिति में होंगे।

MSMEs का महत्व

देश के भौगोलिक विस्तार के अंतर्गत, लगभग 63.4 मिलियन यूनिट के साथ, MSMEs सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 6.11% और सेवा गतिविधियों के अंतर्गत जीडीपी का 24.63% तथा  भारत के विनिर्माण उत्पादन में 33.4% योगदान करते हैं।

MSMEs लगभग 120 मिलियन व्यक्तियों को रोजगार देने में सक्षम हैं और भारत से कुल निर्यात में लगभग 45% योगदान करते हैं।

लगभग 20% MSME ग्रामीण क्षेत्र आधारित हैं, जो MSME क्षेत्र में महत्वपूर्ण ग्रामीण कार्यबल के उपयोग को इंगित करता है।

अतिरिक्त तथ्य:

अंतर्राष्ट्रीय MSME दिवस 27 जून को  मनाया गया।

इसका विषय- COVID-19: द ग्रेट लॉकडाउन और लघु व्यवसाय पर इसके प्रभाव” था।

सीमा संबंधी दावे: दक्षिण एशिया में सीमाओं की पुनर्कल्पना

  • राज्य-केंद्रवाद (State-centrism), किसी राज्य को, राष्ट्र-राज्य (Nation States) की क्षेत्रीय सीमाओं के भीतर, विभिन्न समुदायों अथवा क्षेत्रों के मध्य किसी विवाद के उत्पान होने पर एकमात्र निर्णायक होने का अधिकार प्रदान करता है।
  • इस सिद्धांत के अनुसार, ‘राज्य’ वह होता है, अन्य राज्यों के साथ वार्ता में “राष्ट्रीय” हितों को स्पष्ट, परिभाषित तथा प्रतिनिधित्व करता है।

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चर्चा का कारण

दक्षिण एशियाई राजनीति को देखते हुए, ‘कालापानी विवाद’, जैसे सीमा-विवादों का ‘समाधान करने’ के बजाय ‘नियंत्रित’ (Handleकिये गए हैं।

यहां पर मुख्य समस्या यह है कि संबधित फैसले ‘राज्य-केंद्रित प्रतिमानों’ (State-Centric Paradigm) के अनुसार लिए जाते है।

  • इन निर्णयों में, विवादित क्षेत्रों में रहने वाले लोगों तथा उनकी भावनाओं पर ध्यान नहीं दिया जाता है।
  • प्रायः, राष्ट्र-राज्य के सीमाओं पर रहने वाले लोगों के जीवन, उनकी जीविका तथा उनकी भलाई से क्षेत्रीय सीमाओं को अधिक मूल्यवान तथा महत्वपूर्ण माना जाता है।

निर्णयकर्ता भूल जाते हैं कि इन स्थानों पर देश न केवल सांस्कृतिक और सभ्यतागत पृष्ठभूमि को साझा करते हैं, बल्कि एक ‘आधिकारिक’ मान्यता प्राप्त खुली सीमा भी होती है।

समय की मांग:

दक्षिण एशिया संभवतः समस्त विश्व में राज्यों का सबसे प्राकृतिक क्षेत्रीय समूह है। और साथ ही, यह सबसे जटिल तथा विवादित समूहन भी है।

दक्षिण एशिया को ‘एक राज्यों के क्षेत्र’ के रूप में नहींबल्कि ‘विभिन्न क्षेत्रों का क्षेत्र’ के रूप में देखे जाने की आवश्यकता है।

यह एक ऐसी भूमि है जहां ‘संपर्क क्षेत्र’ संबधित सदस्य-राज्यों द्वारा साझा क्षेत्रीय सीमाओं की सीमाओं से परे मौजूद होने चाहिए।

‘किस क्षेत्र में किस राज्य द्वारा और किस आधार पर “अतिक्रमण” किया गया है?‘ ऐसे “परेशान करने वाले” सवालों के इर्द-गिर्द घूमती साधारण बहसों से आगे बढ़ने की आवश्यकता है।

ऐसा इसलिए आवश्यक है क्योंकि इस तरह के सवाल उन लोगों को सर्वाधिक परेशान करते हैं जो उन क्षेत्रों में सामान्य जीवन-यापन करते हैं।

  • एक प्रकार से, दक्षिण एशिया में ‘राष्ट्र-राज्यों’ के सीमावर्ती क्षेत्रों के निवासी वास्तव में किसी एक राष्ट्र-राज्य से संबंधित नहीं होते हैं।
  • दूसरे शब्दों में, वे एक साथ दोनों राज्यों से संबंधित होते हैं।

बहुलताभिन्नता और समावेशिता सीमावर्ती सत्ता मीमांसा हेतु सम्बद्धता प्रदान करती है; ये राष्ट्र विशेषाधिकार को व्यक्त करने वाले तत्वों, यथा: व्यष्‍टिक, एकीकरणीय, विशिष्ट पहचान आदि तर्कों की उपेक्षा करते है।

आगे की राह:

भारत और नेपाल दोनों, तथा ऐसे मामलों में, अन्य दक्षिण एशियाई देशों को “क्षेत्रीय सहयोग” की नई भाषा की प्रविष्टियाँ प्रस्तुत करने से पहले दक्षिण एशिया को ‘क्षेत्रों के एक क्षेत्र’ के रूप में पुनर्विचार करने की आवश्यकता है।

‘क्षेत्र और क्षेत्रीय पहचान’ दक्षिण एशिया में मात्र “व्यावहारिक राजनीति” के मुद्दे नहीं हैं; बल्कि आवश्यकता इस बात की है कि आधिकारिक तौर पर राजनीति करने के बजाय, स्वाभाविक रूप से तैयार किए गए उपायों को समायोजित किया जाय।

नशा मुक्त भारत : वार्षिक कार्य योजना (2020-21)

संदर्भ:

“अंतरराष्ट्रीय मादक पदार्थ सेवन और तस्करी निरोध दिवस” के अवसर पर “सबसे ज्यादा प्रभावित 272 जिलों के लिए नशा मुक्त भारत : वार्षिक कार्य योजना (2020-21)” का ई-शुभारम्भ किया।

इस कार्यक्रम का आरंभ केन्द्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय द्वारा किया गया है।

कार्य योजना के घटक

  1. जागरूकता संबंधी कार्यक्रम;
  2. उच्च शैक्षणिक संस्थानों, विश्वविद्यालय परिसरों और विद्यालयों पर जोर;
  3. अस्पतालों में उपचार सुविधाओं पर जोर;
  4. सेवा प्रदाताओं हेतु क्षमता निर्माण कार्यक्रम।

कार्यान्वयन:

  1. नशा मुक्त भारत वार्षिक कार्य योजना, 2020-21 में सबसे ज्यादा प्रभावित 272 जिलों पर ध्यान केन्द्रित किया गया है और नारकोटिक्स ब्यूरो, सामाजिक न्याय द्वारा जागरूकता और स्वास्थ्य विभाग के माध्यम से उपचार के संयुक्त प्रयासों सहित त्रिस्तरीय कार्यवाही की जायेगी।
  2. नशा मुक्ति केन्द्रों की स्थापना की जाएंगी।
  3. नशीले पदार्थों के दुष्प्रभावों के बारे में बच्चों और युवाओं को जागरूक करना; सामुदायिक भागीदारी और जन सहयोग बढ़ाना; एकीकृत नशा मुक्ति केन्द्रों (Integrated Rehabilitation Centre for Addicts– IRCAsकी स्थापना की जायेगी।
  4. सरकारी अस्पतालों को नशा मुक्ति केन्द्र खोलने के लिए सहायता; और भागीदारों के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रमो का आयोजन।

प्रमुख तथ्य:

  1. नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो द्वारा “सबसे अधिक प्रभावित” 272 जिलों की पहचान की गयी है, जिनमे से अधिकतर पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, उत्तर प्रदेश और पूर्वोत्तर राज्यों के हैं।
  2. ‘नशा मुक्त भारत’ अभियान की शुरुआत मूल रूप से वर्ष 2015 में पंजाब में शिरोमणि अकाली दल द्वारा की गयी थी।
  3. मादक द्रव्यों के सेवन से सर्वाधिक प्रभावित जिलों की राष्ट्रीय सूची के अनुसार, पंजाब के 22 जिलों में से 18 जिले, तथा हरियाणा के 22 जिलों में से 10 जिले NCB द्वारा चिन्हित किए गए हैं।

आवश्यकता

लगभग 8,50,000 भारतीय ड्रग्स का सेवन करते है। लगभग 4,60,000 बच्चों और 1.8 मिलियन वयस्कों को सूघने वाले नशों से मुक्ति हेतु सहायता की आवश्यकता है तथा 7.7 मिलियन भारतीयों को अफीम-जनित नशों से मुक्ति की आवश्यकता है।

समीक्षा याचिका क्या होती है?

उच्चत्तम न्यायालय द्वारा, व्यभिचार (Adultery) को गैर-अपराध घोषित करने संबंधी वर्ष 2018 के निर्णय की समीक्षा करने से इंकार कर दिया गया है।

वर्ष 2018 का फैसला

उच्चत्तम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश, दीपक मिश्रा की अध्यक्षता में एक संवैधानिक पीठ द्वारा वर्ष 2018 में भारतीय दंड संहिता की धारा 497 को असंवैधानिक ठहराया गया था है, जिसके तहत व्यभिचार (Adultery) एक आपराधिक कृत्य माना जाता था।

संवैधानिक पीठ के अनुसार, यह कानून महिलाओं की व्यक्तिकता को ठेस पहुंचाता है तथा महिलाओं को ‘पतियों की संपत्ति’ बनाता है।

  • यदि रिश्ते में कोई एक व्यक्ति दूसरे को धोखा देता है, तो वे आपस में अलग हो सकते हैं, लेकिन बेवफ़ाई (Infidelity) को अपराध के साथ जोड़ना उचित नहीं है।
  • न्यायालय का तर्क था कि इस दावे के पक्ष में कोई डेटा मौजूद नहीं है कि व्यभिचार को गैर-अपराध घोषित करने से ‘यौन नैतिकता में अराजकता’ अथवा तलाक की संख्या में वृद्धि हो जायेगी।

धारा 497 को निरस्त करने के कारण

  • धारा 497, महिलाओं को अधीनस्थ स्थिति बनाए रखती है तथा गरिमा, यौन स्वायत्तता से वंचित करती है, और लैंगिक रूढ़िवादी विचारधारा पर आधारित है।
  • धारा 497, महिलाओं को चल संपति समझते हुए, उनकी कामुकता को नियंत्रित करने का प्रयास करती है तथा महिलाओं की स्वायत्तता और प्रतिष्ठा को ठेस पहुचाती है।
  • ये संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) और अनुच्छेद 21 (जीने का अधिकार) का भी उल्लंघन करती है।

व्यभिचार पर उच्चत्तम न्यायालय के फैसले:

व्यभिचार संबंधी कानून पर, अतीत में तीन बार – 1954 में, 1985 में और 1988 में न्यायालय में निर्णय दिए गए है।

  1. वर्ष 1954 में, उच्चत्तम न्यायालय ने धारा 497 द्वारा ‘समानता के अधिकार’ के उल्लंघन को अस्वीकार कर दिया था।
  2. वर्ष 1985 में, यह कहा गया कि महिलाओं को कानून में शिकायतकर्ता पार्टी के रूप में शामिल करने की आवश्यकता नहीं है।
  3. वर्ष 1988 में, उच्चत्तम न्यायालय ने कहा कि व्यभिचार कानून “तलवार के बजाय ढाल” है।

समीक्षा याचिका क्या है और इसे कब दायर किया जा सकता है?

संविधान के अनुच्छेद 137 के अंतर्गत भारत के उच्चतम न्यायालय को न्यायिक समीक्षा की शक्ति प्रदान की गई है। इसके तहत, उच्चतम न्यायालय अपने किसी भी निर्णय या आदेश की समीक्षा कर सकता है।

समीक्षा का विषय-क्षेत्र:

उच्चत्तम न्यायालय द्वारा किसी निर्णय की समीक्षा किये जाने हेतु, प्रावधान यह होता है कि, इसमें मामले से संबंधित किसी नए तथ्य को सम्मिलित नहीं किया जाए बल्कि गंभीर त्रुटियों के कारण हुई न्यायिक विफलता में सुधार किया जाए।

समीक्षा याचिका में उच्चत्तम न्यायालय अपने पूर्व के निर्णयों में निहित ‘स्पष्टता का अभाव’ तथा ‘महत्त्वहीन’ गौण त्रुटियों की समीक्षा कर उनमें सुधार कर सकता है।

वर्ष 1975 के एक फैसले में, न्यायमूर्ति कृष्ण अय्यर ने कहा था कि एक ‘समीक्षा याचिका को तभी स्वीकार किया जा सकता है जब न्यायालय द्वारा दिये गए किसी निर्णय में भयावह चूक या अस्पष्टता जैसी स्थिति उत्पन्न हुई हो।‘

वर्ष 2013 के एक फैसले मेंउच्चत्तम न्यायालय ने अपने निर्णय की समीक्षा करने के तीन आधार स्पष्ट किये थे-

  1. नए और महत्त्वपूर्ण साक्ष्यों की खोज, जिन्हें पूर्व की सुनवाई के दौरान शामिल नहीं किया गया था। जो पहले याचिकाकर्ता के संज्ञान में नहीं थे, अथवा उसके द्वारा पर्याप्त प्रयासों के बाद भी न्यायालय में उपस्थित नहीं किये जा सके हो।
  2. दस्तावेज़ में कोई त्रुटि अथवा अस्पष्टता रही हो।
  3. कोई अन्य पर्याप्त कारण, अर्थात् ऐसा कोई कारण जो अन्य दो आधारों के अनुरूप हो।

समीक्षा याचिका कौन दायर कर सकता है?

नागरिक प्रक्रिया संहिता और उच्चतम न्यायालय के नियमों के अनुसार, कोई भी व्यक्ति जो फैसले से असंतुष्ट है, समीक्षा याचिका दायर कर सकता है भले ही वह उक्त मामले में पक्षकार हो अथवा न हो। न्यायालय प्रत्येक समीक्षा याचिका पर विचार नही करता है। न्यायालय समीक्षा याचिका को कोई महत्त्वपूर्ण आधार दिखने पर ही अनुमति देता है।

समीक्षा याचिका दायर किये जाने की समयावधि:

सर्वोच्च न्यायालय द्वारा वर्ष 1996 के नियमों के अनुसार:

  1. समीक्षा याचिका निर्णय की तारीख के 30 दिनों के भीतर दायर की जानी चाहिये।
  2. कुछ परिस्थितियों में, याचिकाकर्ता द्वारा देरी के उचित कारणों को न्यायालय के समक्ष पेश करने पर, न्यायालय समीक्षा याचिका दायर करने की देरी को माफ़ कर सकती है।

समीक्षा याचिका हेतु अपनाई जाने वाली प्रक्रिया:

  1. न्यायालय के नियमों के अनुसार, ‘समीक्षा याचिकाओं की सुनवाई वकीलों की मौखिक दलीलों के बिना की जाएगी’। सुनवाई न्यायधीशों द्वारा उनके चैम्बरों में की जा सकती है।
  2. समीक्षा याचिकाओं की सुनवाई, व्यवहारिक रूप से न्यायाधीशों के संयोजन से अथवा उन न्यायधीशों द्वारा भी की जा सकती है जिन्होंने उन पर निर्णय दिया था।
  3. यदि कोई न्यायाधीश सेवानिवृत्त या अनुपस्थित होता है तो वरिष्ठता को ध्यान में रखते हुए प्रतिस्थापन किया जा सकता है।
  4. अपवाद के रूप में, न्यायालय मौखिक सुनवाई की अनुमति भी प्रदान करता है। वर्ष 2014 के एक मामले में, उच्चतम न्यायालय ने कहा कि “मृत्युदंड” के सभी मामलों संबधी समीक्षा याचिकाओं पर सुनवाई तीन न्यायाधीशों की पीठ द्वारा खुली अदालत में की जाएगी।