चीन की शीर्ष विधायी संस्था नेशनल पीपुल्स कांग्रेस ने पारंपरिक हथियारों की बिक्री को विनियमित करने हेतु वैश्विक संधि में सम्मिलित होने का निर्णय लिया है। चीन द्वारा यह फैसला उस समय लिया गया है, जब महामारी से निपटने तथा हांगकांग की स्वायत्तता के विषय पर देश की वैश्विक रूप से आलोचना हो रही है।
चीन ने यह निर्णय, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा पिछले साल संयुक्त राज्य अमेरिका को समझौते से अलग करने की योजना की घोषणा के बाद लिया है। पारंपरिक हथियारों की बिक्री को विनियमित करने हेतु वैश्विक संधि वर्ष 2014 से लागू हुई थी।
शस्त्र व्यापार संधि का उद्देश्य
इसका उद्देश्य पारंपरिक हथियारों के प्रतिवर्ष 70 बिलियन डॉलर के व्यापार संबंधी वैश्विक चिंताओं को कम करना है।
इस संधि में हथियारों की अंतरराष्ट्रीय बिक्री को खरीदारों के मानवाधिकार संबधी रिकॉर्ड से जोड़ने की आश्यकता पर जोर दिया गया है। इसके अतंर्गत सदस्य देशों द्वारा पारंपरिक हथियार बिक्री हेतु अधिनियम बनाना आवश्यक है।
- इसके अंतर्गत, संभावित हथियारों के सौदों का मूल्यांकन करना आवश्यक है, ताकि यह निर्धारित हो सके, कि संभावित खरीददार हथियारों का प्रयोग नरसंहार, मानवता के खिलाफ अपराध या युद्ध अपराधों के लिए नहीं करेगा।
- यह संधि पारंपरिक सैन्य हथियारों को आतंकवादियों या संगठित आपराधिक समूहों के हाथों में जाने से रोकने का प्रावधान करती है।
- इस संधि के अंतर्गत, संयुक्त राष्ट्र के शस्त्र प्रतिबंधों के उल्लंघन करने वाले सौदों पर रोक लगाने का प्रावधान किया गया है।
शस्त्र व्यापार संधि के अंतर्गत पारंपरिक हथियार सौदों का विनियमन
संयुक्त राष्ट्र शस्त्र व्यापार संधि के अंतर्गत पारंपरिक हथियारों में टैंक तथा अन्य बख्तरबंद लड़ाकू वाहन, तोपखाने, लड़ाकू हेलीकॉप्टर, नौसेना के युद्धपोत, मिसाइल एवं मिसाइल लांचर, तथा अन्य छोटे हथियार सम्मिलित हैं।
इस संधि में गोला बारूद, हथियार भागों और हथियारों के पुर्जों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार हेतु नियमन के लिए अंतर्राष्ट्रीय मानकों का निर्धारण किया गया है।
यह संधि किसी भी देश में हथियारों की घरेलू बिक्री या उपयोग को विनियमित नहीं करती है, तथा संधि सदस्य देशों को अपनी सुरक्षा हेतु हथियारों के व्यापार की वैधता को मान्यता प्रदान करती है।
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