विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के स्वायत्त संस्थान, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एस्ट्रोफिजिक्स (Indian Institute of Astrophysics– IIA) के अध्ययन द्वारा गर्म एक्सट्रीम हीलियम स्टार्स के वायुमंडल में एकल आयन फ्लोरीन की उपस्थिति का पहली बार पता चला है।
इस खोज से स्पष्ट होता है कि इन पिंडों की मुख्य संरचना में कार्बन-ऑक्सीजन (CO) तथा हीलियम (He) सफेद बौना (White Dwarf) का मिश्रण होता है।
इस खोज का महत्व
हाइड्रोजन रहित पिंडो की उत्पत्ति और विकास एक रहस्य है।
उनकी रासायनिक विशिष्टताएँ तारकीय विकास (stellar evolution) विकास के स्थापित सिद्धांत को चुनौती देती हैं,क्योंकि इनकी रासायनिक संरचना कम द्रव्यमान वाले विकसित तारों के साथ मेल नहीं खाती है।
‘एक्सट्रीम हीलियम तारा’ क्या होता है?
एक एक्सट्रीम हीलियम तारा (EHe) एक कम द्रव्यमान वाला सुपरजायंट (supergiant) होता है जिसमे हाइड्रोजन मौजूद नहीं होता है। हाइड्रोजन ब्रह्मांड का सबसे आम रासायनिक तत्व है।
हमारी आकाशगंगा में अब तक ऐसे 21 तारों का पता लगाया गया है।
सफेद बौना (White Dwarf) तारे क्या होते है?
- सूर्य के समान तारों के परमाणु ईंधन समाप्त हो जाने पर सफेद बौना तारे का निर्माण होता है।
- माना जाता है के जिन तारों में इतना द्रव्यमान नहीं होता के वे आगे चलकर अपना इंधन ख़त्म हो जाने पर न्यूट्रॉन तारा बन सकें, वे सारे सफ़ेद बौने बन जाते हैं।
- सफेद बौने तारों में उपस्थित हाइड्रोजन नाभिकीय संलयन की प्रक्रिया में पूरी तरह से खत्म हो जाता है।
- तारों में संलयन की प्रक्रिया ऊष्मा और बाहर की तरफ दबाव उत्पन्न करती है, इस दबाव को तारों के द्रव्यमान से उत्पन्न गुरुत्व बल संतुलित करता है।
- तारे के बाह्य कवच के हाइड्रोजन के हीलियम में परिवर्तित होने से ऊर्जा विकिरण की तीव्रता घट जाती है एवं इसका रंग बदलकर लाल हो जाता है। जिसका तापमान 100,000 केल्विन से अधिक होता है।
- सफ़ेद बौना तारा, आकार में सूर्य का लगभग आधा होता है, फिर भी पृथ्वी से बड़ा होता है।
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