Thursday, 25 June 2020

मतदान की गोपनीयता (Secrecy of ballot)

हाल ही में उच्चत्तम न्यायालय द्वारा मतदान की गोपनीयता पर निर्णय दिया गया है।
  • यह निर्णय, इलाहाबाद उच्च न्यायालय के एक फैसले के विरोध में दाखिल याचिका पर सुनाया गया, जिसमे उच्च न्यायालय ने अक्टूबर 2018 को प्रयागराज जिला पंचायत की बैठक में हुए पंचायत अध्यक्ष के खिलाफ पारित अविश्वास प्रस्ताव को रद्द कर दिया था।
  • उच्च न्यायालय के अनुसार, अविश्वास प्रस्ताव में कुछ सदस्यों द्वारा मतपत्र की गोपनीयता के नियम का उल्लंघन किया गया था। न्यायालय ने सीसीटीवी फुटेज के आधार यह निष्कर्ष निकाला कि सदस्यों द्वारा मतपत्रों को जानबूझ कर दिखाया गया था।
मतदान की गोपनीयता उच्चत्तम न्यायालय का व्यक्तव्य
  • ‘मतपत्र की गोपनीयता’ स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों की आधारशिला है। मतदाता की पसंद स्वतंत्र होनी चाहिए और लोकतंत्र में गुप्त मतदान प्रणाली मतदाता की स्वतंत्रता को सुनिश्चित करती है।
  • वोटर के मतपत्र की गोपनीयता के अधिकार की रक्षा करना क़ानून का नियम है।
  • मतदाता को अपने मत के बारे में बताने के लिए विवश करना भी, मताधिकार के प्रयोग की स्वतंत्रता का उल्लंघन है।
  • मतदान की गोपनीयता का सिद्धांत संवैधानिक लोकतंत्र का एक महत्वपूर्ण संकेतक है।
  • हालांकि, एक मतदाता स्वेच्छा से गैर-प्रकटीकरण (Non-Disclosure) के विशेषाधिकार को त्याग सकता है। ऐसा करने से मतदाता को कोई नहीं रोक सकता है।
जनप्रतिनिधित्व अधिनियम के अनुसार ‘मतदान की गोपनीयता’   
जनप्रतिनिधित्व अधिनियम (Representation of People Act– RPA) की धारा 94 में ‘मतदाता को अपनी पसंद के अनुसार मतदान गोपनीयता के विशेषाधिकार’ का प्रावधान किया गया है।
आगे क्या?
शीर्ष न्यायालय ने आदेश दिया है, कि मूल प्रस्ताव पर गुप्त मतदान के माध्यम से पुनः मतदान जिला न्यायाधीश, इलाहाबाद या उनके द्वारा नामित अतिरिक्त जिला न्यायाधीश, इलाहाबाद की अध्यक्षता में निर्णय की तिथि से दो महीने की अवधि के भीतर जिला न्यायाधीश द्वारा निर्धारित तिथि और समय पर कराया जा सकता है।

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