Sunday, 28 June 2020

मसौदा, पर्यावरण प्रभाव आकलन अधिसूचना (EIA)

चर्चा का कारण

समस्त भारत के कई विश्वविद्यालयों तथा कॉलेजों के छात्र संघों ने प्रस्तावित पर्यावरण प्रभाव आकलन अधिसूचना 2020 के मसौदे को स्थगित करने के लिए केंद्रीय पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर से मांग की है।

पृष्ठभूमि:

भारत में पर्यावरण प्रभाव आकलन (Environment Impact Assessment- EIA), को वैधानिक रूप से ‘पर्यावरण संरक्षण अधिनियम’, 1986 द्वारा स्थापित किया गया है। अधिनियम में EIA संबंधी पद्धतियों तथा प्रक्रियायों हेतु विभिन्न प्रावधान किये गए हैं।

पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम (Environment (Protection) Act,), 1986 के अंतर्गत केंद्र सरकार को, पर्यावरण की सुरक्षा तथा सुधार के लिए सभी उपाय करने हेतु मसौदा अधिसूचना जारी करने शक्ति प्रदान कई गयी है।

प्रस्तावित मसौदे में विवाद के प्रमुख बिंदु:

  • प्रस्तावित मसौदे में सार्वजनिक परामर्श सुनवाई की अवधि घटाकर अधिकतम 40 दिन कर दिया गया है।
  • मसौदे में पर्यावरण मंजूरी लेने के लिए किसी आवेदन पर सार्वजनिक सुनवाई के दौरान जनता को अपनी प्रतिक्रियाएं देने की अवधि 30 दिनों से घटाकर 20 दिन की गयी है।
  • इसके अंतर्गत, कुछ क्षेत्रों को बिना सार्वजनिक सुनवाई अथवा पर्यावरणीय मंजूरी के “आर्थिक रूप से संवेदनशील क्षेत्रों” के रूप में घोषित करने का प्रावधान किया गया है, तथा, साथ ही, “लाल” और “नारंगी” श्रेणी के वर्गीकृत विषैले उद्योगों को ‘संरक्षित क्षेत्र’ से 0-5 किमी की दूरी पर स्थापित किया जा सकता है।
  • खनन परियोजनाओं के लिए पर्यावरण की मंजूरी की बढ़ती वैधता, (वर्तमान में 50 वर्ष बनाम 30 वर्ष) और नदी घाटी परियोजनाएं (वर्तमान में 15 वर्ष बनाम 10 वर्ष), से परियोजनाओं के कारण होने वाले अपरिवर्तनीय पर्यावरणीय, सामाजिक और स्वास्थ्य संबधी खतरों में वृद्धि होने की संभावना है।

पर्यावरण प्रभाव आकलन (EIA) क्या है?

पर्यावरण प्रभाव आकलन (Environment Impact Assessment- EIA) किसी प्रस्तावित परियोजना के संभावित पर्यावरणीय प्रभाव के आंकलन हेतु एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है। इस प्रक्रिया के तहत किसी भी विकास परियोजना या गतिविधि को अंतिम मंजूरी देने के लिए लोगों के विचारों पर ध्यान दिया जाता है। यह मूलतः, एक निर्णय लेने वाला तंत्र है, जो यह तय करता है कि किसी परियोजना को मंजूरी दी जानी चाहिए या नहीं।

EIA प्रक्रिया के विभिन्न चरण

स्क्रीनिंग: इस चरण यह तय किया जाता है, कि किन परियोजनाओं के लिए पूर्ण अथवा आंशिक आंकलन अध्ययन की आवश्यकता है।

विषय-क्षेत्र (Scoping): इस चरण यह तय किया जाता है, कि किन प्रभावों का आकलन किया जाना आवश्यक है। इसका निर्णय, कानूनी आवश्यकताओं, अंतर्राष्ट्रीय अभिसमयों, विशेषज्ञ-ज्ञान और सार्वजनिक सहभागिता के आधार पर किया जाता है। इसके अंतर्गत वैकल्पिक समाधानों पर भी विचार किया जाता है।

प्रभावों का आंकलन तथा मूल्यांकन एवं विकल्पों का विकास: यह चरण प्रस्तावित परियोजना के पर्यावरणीय प्रभावों की पहचान करता है तथा उनका अनुमान लगाता है तथा, साथ ही विकल्पों के विस्तार पर विचार करता है।

EIA रिपोर्ट: इस रिपोर्टिंग चरण में, आम जनता के लिए, एक पर्यावरण प्रबंधन योजना (EMP) तथा परियोजना के प्रभाव का एक गैर-तकनीकी सारांश तैयार किया गया है। इस रिपोर्ट को पर्यावरण प्रभाव व्यक्तव्य (Environmental Impact Statement- EIS) भी कहा जाता है।

निर्णय लेना: इस चरण में, परियोजना को किन शर्तों के तहत मंजूरी दी जानी है या नहीं और इस पर निर्णय लिया जाता है।

निगरानी​​अनुपालनप्रवर्तन और पर्यावरण लेखा परीक्षा: इस चरण में, पर्यावरण प्रबंधन योजना (EMP) के अनुसार, अनुमानित प्रभावों तथा किये जा रहे शमन प्रयासों की निगरानी की जाती है।

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