चर्चा का कारण
उच्चत्तम न्यायालय ने गोवा विधानसभा अध्यक्ष से पिछले वर्ष जुलाई में सत्तारूढ़ भाजपा में सम्मिलित होने वाले 10 विधायकों के विरुद्ध निर्हरता (Disqualification) कार्यवाही पर फैसला करने हेतु विपक्षी कांग्रेस पार्टी द्वारा दायर की याचिका पर प्रतिक्रिया देने को कहा है।
पृष्ठभूमि
पिछले वर्ष जुलाई में 10 विधायकों ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के दो तिहाई हिस्सा होने का दावा करते हुये भाजपा के विधायक दल में विलय का निर्णय किया था और तद्नुसार अध्यक्ष को इसकी जानकारी दी थी।
इसी जानकारी के आधार पर विधानसभा अध्यक्ष ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के गोवा विधानसभा में विधायी दल के कथित विलय का संज्ञान लेते हुये इन विधायकों को भाजपा के सदस्यों के साथ सीट आवंटित कर दी थी।
याचिका के अनुसार इन दस में से नौ विधायकों ने 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर विधानसभा का चुनाव लड़ा था और वे चुनाव जीते थे।
याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि इन विधायकों को ‘संविधान के अनुच्छेद 191 (2) तथा दसवीं अनुसूची (दल-बदल) के पैरा 2’ के तहत सदन की सदस्यता से अयोग्य किया जाना चाहिए।
दलबदल विरोधी कानून क्या है?
संविधान में, 52वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1985 द्वारा एक नयी अनुसूची (दसवीं अनुसूची) जोड़ी गई थी।
- इसमें सदन के सदस्यों द्वारा एक राजनीतिक दल से दूसरे दल में सम्मिलित होने पर ‘दल-बदल’ के आधार पर निरर्हता (Disqualification) के बारे में प्रावधान किया गया है।
- इसमें उस प्रक्रिया को निर्धारित किया गया है, जिसके द्वारा विधायकों तथा सांसदों को सदन के किसी अन्य सदस्य की याचिका के आधार पर सदन के पीठासीन अधिकारी द्वारा ‘दल-बदल’ के आधार पर अयोग्य घोषित किया जा सकता है।
- दल-बदल कानून लागू करने के सभी अधिकार सदन के अध्यक्ष या सभापति को दिए गए हैं एवं उनका निर्णय अंतिम होता है।
यह कानून संसद और राज्य विधानसभाओं दोनों पर समान रूप से लागू होता है।
निरर्हता (Disqualification)
यदि किसी राजनीतिक दल से संबंधित सदन का सदस्य:
- स्वेच्छा से अपनी राजनीतिक पार्टी की सदस्यता त्याग देता है, अथवा
- यदि वह सदन में अपने राजनीतिक दल के निर्देशों के विपरीत मत देता है अथवा मतदान में अनुपस्थित रहता है तथा अपने राजनीतिक दल से उसने पंद्रह दिनों के भीतर क्षमादान न पाया हो।
- यदि चुनाव के बाद कोई निर्दलीय उम्मीदवार किसी राजनीतिक दल में शामिल होता है।
- यदि विधायिका का सदस्य बनने के छह महीने बाद कोई नामित सदस्य (Nominated Member) किसी पार्टी में शामिल होता है।
कानून के तहत अपवाद
सदन के सदस्य कुछ परिस्थितियों में निरर्हता के जोखिम के बिना अपनी पार्टी बदल सकते सकते हैं।
- इस विधान में किसी दल के द्वारा किसी अन्य दल में विलय करने करने की अनुमति दी गयी है बशर्ते कि उसके कम से कम दो-तिहाई विधायक विलय के पक्ष में हों।
- ऐसे परिदृश्य में, अन्य दल में विलय का निर्णय लेने वाले सदस्यों तथा मूल दल में रहने वाले सदस्यों को अयोग्य नहीं ठहराया जा सकता है।
पीठासीन अधिकारी के निर्णय की न्यायिक समीक्षा
इस विधान के प्रारम्भ में कहा गया है कि पीठासीन अधिकारी का निर्णय न्यायिक समीक्षा के अधीन नहीं होगा। वर्ष 1992 में उच्चत्तम न्यायालय ने इस प्रावधान को खारिज कर दिया तथा इस सन्दर्भ में पीठासीन अधिकारी के निर्णय के विरूद्ध उच्च न्यायालय तथा उच्चतम न्यायालय में अपील की अनुमति प्रदान की। हालाँकि, यह तय किया गया कि पीठासीन अधिकारी के आदेश के बिना कोई भी न्यायिक हस्तक्षेप नहीं किया जायेगा।
दल-बदल विरोधी कानून के लाभ
- दल परिवर्तन पर लगाम लगाकर सरकार को स्थिरता प्रदान करता है।
- यह सुनिश्चित करता है कि उम्मीदवार संबधित दल तथा दल के लिए मतदान करने वाले नागरिकों के प्रति निष्ठावान बने रहें।
- दलगत अनुशासन को बढ़ावा देता है।
- दलबदल विरोधी कानून के प्रावधानों को आकर्षित किए बिना राजनीतिक दलों के विलय की सुविधा देता है।
- राजनीतिक स्तर पर भ्रष्टाचार को कम करने की संभावना होती है।
- यह किसी पार्टी को दोषी सदस्यों के लिए दण्डात्मक कार्यवाही का अधिकार प्रदान करता है।
दल-बदल विरोधी कानून पर समितियां
चुनावी सुधारों पर दिनेश गोस्वामी समिति:
दिनेश गोस्वामी समिति ने कहा कि निरर्हता उन मामलों तक सीमित होनी चाहिए जहाँ:
- कोई सदस्य स्वेच्छा से अपनी राजनीतिक पार्टी की सदस्यता छोड़ देता है,
- कोई सदस्य मतदान से परहेज करता है, अथवा विश्वास प्रस्ताव या अविश्वास प्रस्ताव में पार्टी व्हिप के विपरीत वोट करता है। राजनीतिक दल तभी व्हिप केवल तभी जारी कर सकते है जब सरकार खतरे में हो।
विधि आयोग (170 वीं रिपोर्ट)
- इसके अनुसार- ऐसे प्रावधान, जो विभाजन और विलय को निरर्हता (Disqualification) से छूट प्रदान करते हैं, समाप्त किये जाने चाहिए।
- चुनाव पूर्व चुनावी मोर्चो (गोलबंदी) को दलबदल विरोधी कानून के तहत राजनीतिक दलों के रूप में माना जाना चाहिए।
- इसके अलावा राजनीतिक दलों को व्हिप जारी करने को केवल उन मामलों में सीमित करना चाहिए जब सरकार खतरे में हो।
चुनाव आयोग
राष्ट्रपति / राज्यपाल द्वारा, दसवीं अनुसूची के अंतर्गत, किये जाने वाले निर्णयों में चुनाव आयोग की सलाह बाध्यकारी सलाह होनी चाहिए।
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