प्रतिवर्ष 17 जून को मनाया जाता है।
यह दुनिया भर में संकटग्रस्त (Endangered) मगरमच्छों और घड़ियालों की स्थिति को उजागर करने हेतु एक वैश्विक जागरूकता अभियान है।
भारत में मगरमच्छ की तीन प्रजातियां पाई जाती है:
- ‘मगर’ अथवा दलदली मगरमच्छ (Crocodylus palustris)
- खारे पानी का मगरमच्छ (Crocodylus porosus)
- घड़ियाल (Gavialis gangeticus)
विवरण:
‘मगर’ अथवा दलदली मगरमच्छ
- ‘मगर’ को भारतीय मगरमच्छ या दलदल मगरमच्छ भी कहा जाता है। यह पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में पाया जाता है।
- इसे IUCN द्वारा असुरक्षित (Vulnerable) के रूप में सूचीबद्ध किया गया है।
- ‘मगर’ मुख्य रूप से मीठे पानी में पाए जाने वाली प्रजाति है तथा यह झीलों, नदियों और दलदल में पाई जाती है।
- घड़ियाल या मछली खाने वाला मगरमच्छ भारतीय उपमहाद्वीप का मूल निवासी है।
- इसे IUCN द्वारा घोर-संकटग्रस्त (Critically Endangered) के रूप में सूचीबद्ध किया गया है।
- इसकी आबादी राष्ट्रीय चंबल अभयारण्य, कतर्नियाघाट वन्यजीव अभयारण्य, सोन नदी अभयारण्य, उड़ीसा के सतकोसिया अभयारण्य तथा महानदी के वर्षावन बायोम में पायी जाती है।
खारे पानी के मगरमच्छ
यह सभी जीवित सरीसृपों में सबसे बड़ा है। यह IUCN द्वारा संकटमुक्त (Least Concern) के रूप में सूचीबद्ध है। यह भारत के पूर्वी तट पर पाया जाता है।
भारत में मगरमच्छ संरक्षण कार्यक्रम
घड़ियाल और खारे पानी के मगरमच्छ संरक्षण कार्यक्रम को पहली बार 1975 में ओडिशा में लागू किया गया था। इसके बाद में ‘मगर’ संरक्षण कार्यक्रम शुरू किया गया था।
ओडिशा में भारतीय मगरमच्छों की तीनों प्रजातियां पायी जाती है। मगरमच्छ संरक्षण परियोजना के लिए धन और तकनीकी सहायता भारत सरकार के माध्यम से UNDP/ FAO द्वारा प्रदान की गयी।
बौला परियोजना डाँगमाल, (‘BAULA’ PROJECT AT DANGAMAL): उड़िया भाषा में ‘खारे पानी के मगरमच्छ’ ‘बौला (BAULA)’ कहा जाता है। डाँगमाल, भितरकनिका अभयारण्य में स्थित है।
रामतीर्थ मगर परियोजना (Mugger Project at Ramatirtha): यह परियोजना ओडिशा के रामतीर्थ केंद्र में संचालित है, यहाँ पर मगर का संरक्षण किया जाता है।
टीकरपाड़ा, ओडिशा में घड़ियाल परियोजना
नंदनकानन, ओडिशा में मगरमच्छ प्रजनन केंद्र
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