प्रमुख बिंदु:
- वर्ष 2018 में, ब्राजील में 709 किलोमीटर लंबी आकाशीय बिजली (lightning– तड़ित) चमकने का रिकार्ड दर्ज किया गया।
- इससे पहले, सबसे लंबी आकाशीय बिजली चमकने का रिकार्ड अमेरिका के ओक्लाहोमा राज्य के नाम था, यहाँ 20 जून 2007 को 321 किमी की लंबाई में आकाशीय बिजली चमकी थी।
- विश्व में आकाशीय बिजली गिरने की सर्वाधिक घटनाएं, प्रति वर्ष औसतन 8 मिलियन, ब्राजील में घटित होती है।
- वर्ष 2019 में अर्जेंटीना में आकाशीय बिजली की चमक 73 सेकंड तक दिखी, जोकि अब तक बिजली चमकने का सर्वाधिक लंबा रिकार्ड है।
- इसके पहले, सर्वाधिक देर तक बिजली चमकने का रिकॉर्ड 30 अगस्त 2012 को फ़्रांस के प्रांत ‘एल्प्स कोट डी‘एज़ुर’ (Alpes-Côte d’Azur) में दर्ज किया गया था, जिसकी अवधि 74 सेकंड थी।
- बिजली चमकने को अब रिकॉर्ड- बुक्स में सामिलित किया जाता है, इन्हें वैज्ञानिक भाषा में ‘मेगाफ़्लैश’ (Megaflashes) के नाम से जाना जाता है।
भारत में आकाशीय बिजली गिरने की घटनाएं:
- भारत में आकाशीय बिजली के गिरने से होने वाली सर्वाधिक मौतें उत्तर प्रदेश में होती है, इसके पश्चात बिहार का स्थान है।
- वर्ष 2019 के दैरान, 1 अप्रैल से 31 जुलाई के मध्य बिहार में बिजली गिरने से कम से कम 170 लोगों की मृत्यु हो गई।
- समस्त भारत में, प्रति महीने आकाशीय बिजली गिरने की घटनाओं में वृद्धि हो रही है।
- भारत में, किसी अन्य मौसम संबंधी दुर्घटना की अपेक्षा आकाशीय बिजली गिरने के कारण अधिक मौतें होती हैं।
आकाशीय बिजली (तड़ित) क्या होती है?
आकाशीय बिजली अथवा तड़ित, वातावरण में बिजली का एक तीव्र तथा व्यापक निस्सरण होती है। इसका कुछ भाग पृथ्वी की ओर निर्देशित होता है।
सामन्यतः यह तड़ित निस्सरण, 10-12 किमी. ऊँचे आद्रता-युक्त बादलों में उत्पन्न होता है, तथा यह बादल के ऊपरी हिस्से और निचले हिस्से के बीच विद्युत आवेश के अंतर का परिणाम है।
आकाशीय बिजली का निर्माण
- आकाशीय बिजली उत्पन्न करने वाले बादलों का आधार पृथ्वी की सतह से लगभग 1-2 किमी. ऊपर होता है तथा उनका शीर्ष लगभग 10-12 किमी. की ऊँचाई तक होता है। इन बादलों के शीर्ष पर तापमान -35 डिग्री सेल्सियस से -45 डिग्री सेल्सियस तक होता है।
- जैसे ही, जलवाष्प इन बादलों में ऊपर की उठता है, तापमान में कमी के कारण इसका संघनन हो जाता है। इस प्रक्रिया में ऊष्मा उत्पन्न होती है, जिससे जल के अणु और ऊपर की ओर गति करते हैं।
- जैसे-जैसे वे शून्य से कम तापमान की ओर बढ़ते हैं, जल की बूंदें छोटे बर्फ के क्रिस्टल में बदल जाती हैं। इन जल कणों की ऊपर की ओर गति जारी रहती है, जिससे उनके द्रव्यमान में भी वृद्धि होती है। अंत में भारी होकर पृथ्वी की ओर गिरना शुरू कर देते हैं।
- इस प्रकार एक प्रक्रिया का निर्माण हो जाता है, जिसमे बर्फ के छोटे क्रिस्टल ऊपर की ओर जबकि बड़े क्रिस्टल नीचे की ओर गति करते हैं।
- इस प्रक्रिया के परिणामस्वरूप, इन कणों के मध्य टकराव होता है जिससे इलेक्ट्रॉन निर्मुक्त होते हैं, यह प्रक्रिया विद्युत स्पार्क की उत्पत्ति के समान कार्य करती है। गतिमान मुक्त इलेक्ट्रॉनों में परस्पर अधिक टकराव होता है, तथा नए इलेक्ट्रॉनों का निर्माण होता हैं; इस प्रकार एक चेन रिएक्शन का आरंभ होता है।
- इस प्रक्रिया से एक ऐसी स्थिति उत्पन्न होती है जिसमें बादलों की ऊपरी परत धनात्मक रूप से आवेशित तथा मध्य परत नकारात्मक रूप से आवेशित होती है। इन दोनों परतों के मध्य विद्युत-विभव में कई बिलियन वोल्ट का अंतर विद्यमान होता है। इससे कुछ ही समय में ही दोनों परतों के मध्य एक विशाल विद्युत धारा (लाखों एम्पीयर) का प्रवाह होने लगता है।
- परिणामस्वरूप भारी मात्रा में ऊष्मा उत्पन्न होती है जिससे बादल की दोनों परतों के मध्य वायु-स्तंभ का तापमान बढ़ जाता है। इस ऊष्मा के कारण बिजली कड़कने के दौरान वायु-स्तंभ का रंग लाल नजर आता है। गर्म वायु के विस्तारित होने से प्रघाती तरंगे (shock waves) उत्पन्न होती है, जिसके परिणामस्वरूप गड़गड़ाहट की आवाज़ आती है।
आकाशीय बिजली पृथ्वी पर किस प्रकार गिरती है?
- पृथ्वी, बिजली की अच्छी संवाहक होत्ती है, तथा विद्युतीय रूप से तटस्थ होती है। हालांकि, बादल की मध्य परत की तुलना में, यह धनात्मक रूप से आवेशित हो जाती है। परिणामस्वरूप, लगभग 15% -20% बिजली का प्रवाह पृथ्वी की ओर निर्देशित हो जाता है। यह विद्युत प्रवाह जीवन और संपत्ति को नुकसान पहुँचाता है।
- आकाशीय बिजली की, पेड़ों, टावरों या इमारतों जैसी लंबी वस्तुओं पर गिरने की अधिक संभावना होती है। सतह से लगभग 80-100 मीटर की दूरी पर आकाशीय बिजली में इन लंबी वस्तुओं की ओर मार्ग परिवर्तित करने की प्रवृत्ति होती है। इसका कारण होता है, कि वायु, बिजली की अच्छी संवाहक नही होत्ती है, और वायु में गतिशील इलेक्ट्रान, पृथ्वी की ओर अपेक्षाकृत अच्छे संवाहक तथा निकटवर्ती माध्यम से प्रवाहित होते है।
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