आरक्षण पर सुप्रीम कार्ट ने एक बड़ी टिप्पणी की है। शीर्ष न्यायालय ने कहा है कि किसी एक समुदाय को सीटों का आरक्षण मौलिक अधिकार नहीं है।
पृष्ठभूमि
सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु के मेडिकल कॉलेजों में ओबीसी के लिए 50 फ़ीसद सीटें आरक्षित किए जाने की माँग को लेकर दायर याचिका पर सुनवाई करने से इनकार कर दिया।
तमिलनाडु के लगभग सभी राजनीतिक दलों ने संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत एक रिट याचिका दायर की थी। याचिका में माँग की गयी थी कि राज्य के मेडिकल कॉलेजों में ओबीसी आरक्षण को 50 फ़ीसद कर दिया जाए।
याचिकाकर्ताओं ने केंद्र सरकार पर, चिकित्सा और दंत विज्ञान पाठ्यक्रमों में अखिल भारतीय कोटा के अंतर्गत सीटों के लिए पिछड़े वर्गों तथा अति पिछड़े वर्गों के लिए निर्धारित 50% कोटा लागू नहीं करने तथा “तमिलनाडु के लोगों के लिए उचित शिक्षा के अधिकार” का उल्लंघन करने का आरोप लगाया था।
उच्चतम न्यायालय द्वारा की गई महत्वपूर्ण टिप्पणियां
आरक्षण मौलिक अधिकार नहीं है। इसलिए, इस मामले में अनुच्छेद 32 लागू नहीं किया जा सकता।
अतः आरक्षण लाभ नहीं दिया जाना किसी भी संवैधानिक अधिकार का उल्लंघन नहीं माना जा सकता है।
याचिकाकर्ताओं के तर्क
राज्य में ऐसे आरक्षण के लागू न होने से इसके निवासियों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होता है।
स्वास्थ्य सेवा महानिदेशक, आरक्षण प्रदान करने हेतु निम्नलिखित में से किसी भी कानून का पालन नहीं कर रहे हैं:
- तमिलनाडु पिछड़ा वर्ग, अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति (शैक्षणिक संस्थानों में सीटों का आरक्षण और सरकारी सेवाओं में नियुक्ति) क़ानून, 1993 के अनुसार अखिल भारतीय कोटा के तहत स्नातक पाठ्यक्रमों में तथा तमिलनाडु में स्नातकोत्तर चिकित्सा पाठ्यक्रम में ओबीसी उम्मीदवारों के लिए 50% आरक्षण प्रदान करना।
- अन्य राज्यों के लिए स्नातकोत्तर चिकित्सा पाठ्यक्रम तथा अखिल भारतीय कोटा में ओबीसी उम्मीदवारों के लिए 27% आरक्षण।
प्रोन्नति में आरक्षण पर कोर्ट का निर्णय
फरवरी 2020 में, सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया कि प्रोन्नति में आरक्षण मौलिक अधिकार नहीं है और राज्य को इसके लिए बाध्य नहीं किया जा सकता।
अतिरिक्त जानकारी
आरक्षण संबंधी संवैधानिक प्रावधान
- अनुच्छेद 15(4) तथा 16(4) में कहा गया है कि संविधान में उल्लिखित ‘समानता’ संबधी प्रावधान सरकार को पिछड़े वर्गों, विशेष रूप से अनुसूचित जाति (Scheduled Castes- SCs) तथा अनुसूचित जनजाति (Scheduled Tribes- STs) के पक्ष में शिक्षण संस्थानों अथवा नौकरियों में प्रवेश हेतु विशेष प्रावधान करने से नहीं रोकते हैं।
- अनुच्छेद 16(4A) के अनुसार, राज्य सरकारें अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के पक्ष में पदोन्नति के मामलों में आरक्षण के लिये कोई भी प्रावधान कर सकती हैं यदि राज्य की राय में राज्य के अधीन सेवाओं में उनका पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं है।
- 1992 के इंद्रा साहनी मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने निर्णय दिया कि, संयुक्त आरक्षण कोटा के लिए ऊपरी सीमा 50% से अधिक नहीं होनी चाहिए।
- 2019 में, 103 वें संविधान संशोधन अधिनियम दवारा आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (Economically Weaker Sections- EWS) को सरकारी नौकरियों और शिक्षा के क्षेत्र में 10 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान किया गया है।
रिट अधिकार क्षेत्र (Writ jurisdiction)
संविधान के अनुच्छेद 32 के अंतर्गत उच्चतम न्यायालय तथा अनुच्छेद 226 के अधीन उच्च न्यायालय, मूल अधिकारों की रक्षा करने तथा इनके प्रवर्तन हेतु, बंदी प्रत्यक्षीकरण (Habeas Corpus), परमादेश रिट (Mandamus), प्रतिषेध रिट (Prohibition), उत्प्रेषण लेख (Certaiorari), अधिकार पृच्छा (Quo Warranto), रिट जारी कर सकते हैं।
अनुच्छेद 32 के तहत संसद, इन रिट्स (writs) को जारी करने के लिए किसी अन्य न्यायालय को भी प्राधिकृत कर सकती है। हालांकि, अभी तक ऐसा कोई प्रावधान नहीं किया गया है।
उच्चतम न्यायालय केवल मौलिक अधिकारों के प्रवर्तन के लिए ही रिट जारी कर सकता है जबकि उच्च न्यायालय मौलिक अधिकारों के प्रवर्तन के लिए तथा साधारण कानूनी अधिकार के लिए भी रिट जारी कर सकता है।
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