वर्ष 2020 की थीम: भोजन, चारा एवं रेशों के लिए उपभोग और भूमि के बीच अंतर्संबंध (Food.Feed.Fibre.- the links between consumption and land)।
17 जून क्यों?
संयुक्त राष्ट्र संघ की आम सभा में 1994 में मरुस्थलीकरण रोकथाम का प्रस्ताव रखा गया जिसका अनुमोदन दिसम्बर 1996 में किया गया। 14 अक्टूबर 1994 को भारत ने मरुस्थलीकरण को रोकने के लिए संयुक्त राष्ट्र अभिसमय (United Nations Convention to Combat Desertification- UNCCD) पर हस्ताक्षर किए।
जिसके पश्चात् वर्ष 1995 से मरुस्थलीकरण का मुकाबला करने के लिए 17 जून को प्रतिवर्ष यह दिवस मनाया जाने लगा।
मरुस्थलीकरण क्या है?
मरुस्थलीकरण जमीन के अनुपजाऊ हो जाने की ऐसी प्रक्रिया है जिसमें जलवायु परिवर्तन तथा मानवीय गतिवधियों समेत अन्य कई कारणों से शुष्क, अर्द्ध-शुष्क और निर्जल अर्ध-नम इलाकों की जमीन रेगिस्तान में बदल जाती है। इससे जमीन की उत्पादन क्षमता में कमी और ह्रास होता है।
मरुस्थलीकरण एक तरह से भूमि क्षरण का वह प्रकार है, जब शुष्क भूमि क्षेत्र निरंतर बंजर होता है और नम भूमि भी कम हो जाती है। साथ ही साथ, वन्यजीव और वनस्पति भी खत्म होती जाती है। इसकी कई वजह होती है, इसमें जलवायु परिवर्तन और इंसानी गतिविधियां प्रमुख हैं।
शुष्क भूमि पारिस्थितिकी, जो विश्व के एक-तिहाई क्षेत्र में विस्तृत है, अति-शोषण तथा अनुपयुक्त भूमि उपयोग के लिए बेहद संवेदनशील होती है। गरीबी, राजनीतिक अस्थिरता, वनों की कटाई, अतिवृष्टि तथा खराब सिंचाई प्रथाएं, यह सभी भूमि की उत्पादकता को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
मरुस्थलीकरण को रोकने के लिए संयुक्त राष्ट्र अभिसमय (UNCCD) के बारे में:
UNCCD की स्थापना वर्ष 1994 में की गयी थी।
मरुस्थलीकरण से निपटने के लिए संयुक्त राष्ट्र संधि (UNCCD) क़ानूनी रूप से बाध्यकारी एकमात्र अंतरराष्ट्रीय समझौता है जो पर्यावरण और विकास को स्थायी भूमि प्रबंधन से जोड़ता है।
- रियो पृथ्वी सम्मेलन के पश्चात् इस अभिसमय के लिये वार्ताएं शुरू हुईं।
- UNCCD की स्थापना रियो पृथ्वी सम्मेलन के एजेंडा 21 के अंतर्गत की गयी थी।
- अभिसमय को सार्वजनिक करने में हेतु, वर्ष 2006 को “अंतर्राष्ट्रीय रेगिस्तान और मरुस्थलीकरण वर्ष” घोषित किया गया था।
- UNCCD विशेष रूप से शुष्क, अर्ध-शुष्क और शुष्क उप-आर्द्र क्षेत्रों को संबोधित करता है, जिसे शुष्क भूमि के रूप में जाना जाता है।
- उद्देश्य: अभिसमय का प्रमुख उद्देश्य है-सभी स्तरों पर प्रभावशाली कार्यवाहियों (अंतरराष्ट्रीय सहयोग और साझेदारी व्यवस्थाओं द्वारा) के माध्यम से सूखे और मरुस्थलीकरण की गंभीर समस्याओं से जूझ रहे देशों में इन समस्याओं के प्रभाव को कम करना।
- भारत में ‘पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय’ इस अभिसमय के कार्यान्वयन हेतु नोडल मंत्रालय है।
भारत के लिए चिंता
सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (CSE) द्वारा जारी “स्टेट ऑफ एनवायरमेंट इन फिगर्स 2019” की रिपोर्ट के मुताबिक 2003-05 से 2011-13 के बीच भारत में मरुस्थलीकरण 18.7 हेक्टेयर तक बढ़ चुका है।
वहीं सूखा प्रभावित 78 में से 21 जिले ऐसे हैं, जिनका 50 फीसदी से अधिक क्षेत्र मरुस्थलीकरण में बदल चुका है।
देश की 80 प्रतिशत से अधिक निम्न भूमि सिर्फ नौ राज्यों में है: राजस्थान, महाराष्ट्र, गुजरात, जम्मू और कश्मीर, कर्नाटक, झारखंड, ओडिशा, मध्य प्रदेश और तेलंगाना।
मरुस्थलीकरण या भूमि क्षरण के उच्चतम क्षेत्र वाले शीर्ष तीन जिले:
- जैसलमेर, राजस्थान (2011-13 के दौरान 92.96 प्रतिशत और 2003-05 के दौरान 98.13 प्रतिशत),
- लाहौल और स्पीति, हिमाचल प्रदेश (2011-13 में 80.54 प्रतिशत) और (2003-05 के दौरान 80.57 प्रतिशत)
- कारगिल, जम्मू और कश्मीर (2011-13 के दौरान 78.23 प्रतिशत और 2003-05 के दौरान 78.22 प्रतिशत)।
भारत में मरुस्थलीकरण के मुख्य कारण हैं:
- पानी का क्षरण (10.98 प्रतिशत)
- पवन द्वारा कटाव (5.55 प्रतिशत)
- मानव निर्मित / बस्तियाँ (0.69 प्रतिशत)
- वनस्पति का क्षय (8.91 प्रतिशत)
- लवणता (1.12 प्रतिशत)
- अन्य (2.07 प्रतिशत)
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