सरकार ने हाल ही में तापीय विद्युत् केंद्रों प्लांटों को आपूर्ति किए जाने वाले कोयले की अनिवार्य धुलाई को समाप्त करने हेतु ‘पर्यावरण संरक्षण अधिनियम’ (Environment Protection Act) में संशोधन किया है।
इस अधिसूचना ने सरकार के ‘जलवायु-परिवर्तन प्रतिबद्धताओं के तहत खदान से 500 किमी से अधिक दूरी पर स्थित सभी तापीय इकाइयों को आपूर्ति किये जाने वाली कोयले की धुलाई की अनिवार्यता’ संबंधी वर्ष 2016 के आदेश को रद्द कर दिया।
चर्चा का कारण
कुछ विशेषज्ञों ने सरकार के इस कदम का विरोध किया है। इनका कहना है कि, कोयला-आधारित विद्युत् केंद्रों पर प्रदूषण भार में अब तक जो भी कमी हुई है, इस अधिसूचना से वह समाप्त हो जायेगी।
हालांकि, सरकार ने अपने कदम का बचाव करते हुए विरोध करने वालों पूछा है कि, “जब खदान से 500 किमी के भीतर कोयला गंदा नहीं होता है तब यह 500 किमी के बाद किस प्रकार गंदा हो सकता है?”
कोयले की अनिवार्य धुलाई हेतु तर्क
जनवरी 2014 के बाद से, पर्यावरण मंत्रालय, बिना धुले कोयले की आपूर्ति-दूरी को कार्मिक रूप से कम करने की दिशा में कार्य कर रहा है। इसका उद्देश्य, तापीय संयत्रों को धुले हुए कोयले की आपूर्ति, तथा उत्सर्जित राख की सीमा को 34 प्रतिशत तक करना है, चाहे वे खदान से किसी भी दूरी पर स्थित हो।
- यह नीति जलवायु परिवर्तन समझौतों में सरकार के निर्णयों के अनुरूप है- कोयला उपभोग में कमी नहीं की जायेगी, अपितु, उत्सर्जन नियंत्रण पर फोकस किया जायेगा।
- धुले हुए कोयले के प्रयोग से शुष्क ईंधन की दक्षता तथा गुणवत्ता में वृद्धि होती है।
- सैधांतिक रूप में, कोयला धोने जैसी प्रक्रिया को सभी के लिए अच्छा माना जाता है। इसे तापीय शक्ति संयत्रों को परिचालन में समस्याएं नहीं होती हैं।
- धुले कोयले का दहन, उत्सर्जन तथा स्थानीय वायु प्रदूषण के दृष्टिकोण से बेहतर होता है, और इससे उत्सर्जित राख तथा गैर-दहनशील सामग्री के अनावश्यक परिवहन में कमी आती है।
नयी अधिसूचना के तर्क
- विद्युत् मंत्रालय ने यह मानता है कि धुले हुए कोयले के दहन से प्रदूषण-उत्सर्जन को कम करने में मदद नहीं मिलती है।
- वाशरी (washery) निकला अवशिष्ट कोयला बाजार में पहुच जाता है तथा इसका उद्योगों द्वारा उपयोग किया जाता है जिससे प्रदूषण में बढ़ोत्तरी होती है।
- इसका कहना है कि कोयले की धुलाई अपने उद्देश्यों को पूरा करने में असमर्थ है। इससे “प्रदूषण को मात्र कोयला खदानों के आसपास ही सीमित किया जा सकता है।
- कोयला धोने की प्रक्रिया भारीभरकम तथा महंगी होती है।
आगे की राह
विद्युत् मंत्रालय ने विद्युत् उत्पादन करने वाली इकाइयों में प्रदूषण नियंत्रण प्रौद्योगिकियों के प्रयोग करने पर बल दिया है।
- केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के दिशा-निर्देशों के तहत, 50 गीगावाट की तापीय विद्युत क्षमता के संयत्रों को उत्सर्जन नियंत्रण प्रणाली स्थापित करना अनिवार्य है।
- धुले हुए कोयले के स्थान पर कच्चे कोयले का उपयोग करना भी लाभप्रद होगा।
- बिजली संयंत्रों में सुपरक्रिटिकल प्रौद्योगिकी के उपयोग से, उत्सर्जन को कम करने में मदद मिलेगी तथा बिना धुले कोयले का दक्षतापूर्वक उपयोग किया जा सकता है।
- धुले कोयले का उपयोग विद्युत् उत्पादन को महंगा बनाता है।
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