Thursday, 25 June 2020

अंतरासस्यन (अंतर-फसली)

केरल सरकार, बागानी कृषि क्षेत्र संबंधी विशिष्ट कानूनों में संशोधन करने की योजना बना रही है। इसके माध्यम से नकदी फसलों, जैसे चायकॉफीइलायची और रबर के साथ खाद्य फसलों के अंतरासस्यन (Intercropping) की अनुमति प्रदान की जायेगी।

इसके लिए, केरल भूमि सुधार अधिनियमकेरल अनुदान और पट्टे (अधिकारों का संशोधन) अधिनियम और केरल भूमि उपयोग नियम में संसोधन की आवश्यकता होगी।

आवश्यकता

  • खाद्य आयात हेतु पड़ोसी राज्यों पर निर्भरता समाप्त करने के लिए।
  • बड़े उत्पादकों द्वारा संभावित खाद्य संरक्षणवाद से बचाव करने हेतु बागानी फसलों के साथ कृषि खाद्य फसलों के उत्पादन में वृद्धि करने हेतु।

संशोधन के प्रभाव

केरल में 8 लाख हेक्टेयर में बगानी फसलों का उत्पादन किया जाता है। संबंधित कानूनों में संशोधन के पश्चात अंतरासस्यन (Intercropping) के लिए लगभग 2 लाख हेक्टेयर भूमि उपलब्ध हो जाएगी।

  • प्रस्तावित संशोधन के अंतर्गत बागानी कृषि के साथ डेयरी और पोल्ट्री फार्मिंग की अभी अनुमति दी जायेगी।
  • यह संशोधन, विषैले कीटनाशकों, रासायनिक उर्वरकों और पानी के उपयोग को कम करके उच्च उपज वाली खाद्य फसलों में निवेश को प्रेरित करेगा।

प्रस्तावित योजना

केरल कृषि विश्वविद्यालय ने केरल को 23 कृषि-जलवायु क्षेत्रों में विभाजित किया है।

  • इसके अनुसार, मन्नार जैसे ऊँचाई वाले क्षेत्रों में स्थित चाय बागान, संतरे, सेब, एवोकैडो, अंगूर तथा सर्दियों में उगायी जाने वाली सब्जियां आदि के अंतरासस्यन (Intercropping) के लिए उपयुक्त है।
  • रबर उत्पादक क्षेत्रों में, पेड़ों के बीच में फैले छोटे भूखंडों में रामबुतान (rambutan), मैंगोस्टीन (mangosteen) और अन्य उष्णकटिबंधीय फलों की खेती की जा सकती है।
  • चाय, कॉफी और इलायची के बागानों में छायादार वृक्षों के रूप में कटहल के पेड़ लगाने का भी सुझाव दिया गया है।

अंतरासस्यन (Intercropping) क्या है?

किसी खेत में एक साथ दो अथवा दो से अधिक फसलों की खेती को अंतर-फसली या अंतरासस्यन (Intercropping) कहते है।

इसका मुख्य उद्देश्य पारिस्थितिक संसाधनों का उपयोग करते हुए किसी कृषि भूमि से अधिक उपज प्राप्त करना होता है।

अंतरासस्यन हेतु विभिन्न पद्यतियां

  1. मिश्रित अंतरासस्यन (Mixed intercropping) – बिना किसी पंक्ति व्यवस्था के, अव्यवस्थित तरीके से दो या अधिक फसलों को लगाया जाता है।
  2. पंक्ति अंतरासस्यन (Row intercropping)- दो या दो से अधिक फसलों को अलग-अलग पंक्तियों में लगाया जाता है।
  3. क्रमिक अंतरासस्यन (Relay intercropping) – दो या दो से अधिक फसलों को एक ही समय में उनके फसल-चक्र के अनुसार उगाया जाता है। इसमें पहली फसल के उग आने के पश्चात, परन्तु, उसकी कटाई से पहले दूसरी फसल को बोया जाता है।
  4. पट्टी अंतरासस्यन (Strip intercropping) – इसमें अलग-अलग पट्टियों में एक साथ दो या अधिक फसलें उगायी जाती हैं।

अंतरासस्यन के लाभ

  • एकल फसलों की तुलना में प्रकाशपानी और अन्य पोषक संसाधनों का अधिक कुशल उपयोग
  • इसमें छायादार फसलों का प्रभावी प्रबंधन होता है, क्योंकि मिश्रित फसल में कीटनाशकों का प्रयोग कम करना पड़ता है।
  • प्रति इकाई क्षेत्र में अधिक उपज प्रदान होती है।
  • फलीदार (leguminous) फसलों के अंतरासस्यन से मृदा उर्वरता में सुधार, अर्थात नाइट्रोजन फिक्सिंग।
  • मृदा कटाव पर रोक।
  • मृदा सतह से कम वाष्पीकरण।

अंतरासस्यन के दोष

  • अंतरासस्यन हमेशा यांत्रिक कृषि प्रणालीयों के अनुकूल नहीं होती है।
  • इसमें फसलों पर अधिक ध्यान देना पड़ता है, तथा इसके लिए विशेषज्ञ प्रबंधन की आवश्यकता होती है।
  • रोपण, निराई और कटाई में अधिक समय लगता है, जिससे श्रम-लागत में वृद्धि होती है।
  • अंतरासस्यन प्रणाली में फसलों के रोपण, खेती, खाद, छिड़काव और कटाई की अग्रिम योजना बनानी पड़ती है।

No comments:

Post a Comment