भारत सरकार चीन के साथ सीमा विवाद के प्रत्युत्तर में भारत-चीन के मध्य व्यापार पर प्रतिबंध लगाने का विचार कर रही है। भारत की जनता में ‘चीनी वस्तुओं का बाहिष्कार कर चीन को सबक सिखाने’ का विचार जोर पकड रहा है।
परन्तु, वैश्विक व्यापार में चीन की प्रमुखता तथा भारत की अल्प भागीदारी को देखते हुए, व्यापार प्रतिबंध लगाने से चीन पर अधिक प्रभाव नहीं पड़ेगा, अपितु, इससे भारतीय उपभोक्ता तथा व्यवसाय प्रतिकूल रूप से प्रभावित होंगे।
प्रमुख क्षेत्रों में चीन की भागीदारी
- स्मार्टफोन: कुल बाजार: 2 लाख करोड़ रुपये; चीनी उत्पादों की हिस्सेदारी: 72%।
- दूरसंचार उपकरण: कुल बाजार: 12,000 करोड़ रुपये; चीनी उत्पादों की हिस्सेदारी: 25%।
- वाहनों के पुर्जे: कुल बाजार: 1 लाख करोड़; चीनी उत्पादों की हिस्सेदारी: 26%।
- इंटरनेट एप्स: कुल बाजार: 0 करोड़ स्मार्टफोन उपयोगकर्ता; चीनी उत्पादों की हिस्सेदारी: 66%।
- सौर ऊर्जा: कुल बाजार: 37,916 मेगावाट; चीनी उत्पादों की हिस्सेदारी: 90%।
- इस्पात: चीनी उत्पादों का हिस्सा: 18-20%।
- फार्मा: बाजार का आकार: 5 लाख करोड़; चीनी उत्पादों की हिस्सेदारी: 60%।
‘चीन का बाहिष्कार’ कब संभव हो सकता है?
चीन का बाहिष्कार करने के लिए, भारत और चीन के बीच आर्थिक अंतर कम किये जाने की आवश्यकता है। आर्थिक विषमता को कम होने पर, दोनों देशों के मध्य गतिरोध की स्थिति में भारतीय जनता की भावनाओं को ध्यान में रखते हुए, भारत, चीनी उत्पादों का बहिष्कार कर सकता है तथा ‘आत्म-निर्भर भारत’ बनने का मार्ग प्रशस्त कर सकता है।
चीन उत्पादों के सस्ता होने कारण
- सस्ते श्रम की उपलब्धता: चीनी उत्पादों के सस्ते होने के प्रमुख कारकों में से एक है।
- कम दामों में कच्चे माल की आपूर्ति: कच्चा माल किसी उत्पाद की कुल लागत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होता है। चूंकि चीनी कंपनियां थोक उत्पादन के लिए थोक खरीद में निवेश करती हैं, इससे उत्पादन लागत में महत्वपूर्ण कमी होती है।
- दक्ष व्यापार माहौल: एक कुशल वपापार तंत्र में आपूर्तिकर्ता, कल-पुर्जों के निर्माता, वितरक, सरकारी एजेंसियों तथा ग्राहकों का एक नेटवर्क सम्मिलित होता है। यह सभी उत्पादन प्रक्रिया में होने वाली दिक्कतों को हल करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है।
- व्यवसाय हेतु ऋणों की सुलभता: उद्योगों तथा व्यवसायों, विशेष रूप से बड़े उद्योगों के लिए आसानी से ऋण उपलब्ध होता है, जिससे विनिर्माण क्षेत्र में व्यवसायों को अधिक वित्तीय क्षमता प्राप्त होती है।
- चीनी कारखानों की स्वास्थ्य और सुरक्षा मानकों तथा पर्यावरण संरक्षण कानूनों की अवहेलना के लिए आलोचना की जाती है।
- चीन में मूल्य वर्धित कर (Value Added Tax– VAT) प्रणाली प्रचलित है। तथा निर्यात की जाने वाली वस्तुओं पर जीरो प्रतिशत वैट लगता है।
भारत में ‘चीनी उत्पादों का बहिष्कार‘ आंदोलन क्यों मुश्किल है?
व्यापार घाटा: वितीय वर्ष 2018-19 में, भारत का चीन को कुल 16.7 बिलियन डॉलर का निर्यात किया गया, जबकि चीन से कुल आयात 70.3 बिलियन डॉलर था। परिणामस्वरूप कुल व्यापार घाटा 53.6 बिलियन डॉलर था।
चीनी निवेश वाली निजी भारतीय कंपनियां: वर्ष 2015 से 2019 के बीच चीन से कुल 1.8 बिलियन डॉलर का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (Foreign Direct Investment- FDI) किया गया। चीनी प्रोद्योगिकी निवेशकों ने भारतीय स्टार्ट-अप्स में अनुमानित $ 4 बिलियन का निवेश किया है।
भारतीय डिजिटल बाजार में चीन का दबदबा: भारतीय डिजिटल बाजार में चीनी निवेश वाले ऐप्स का बड़ा हिस्सा है, गेटवे हाउस रिपोर्ट के अनुसार, iOS और गूगल प्ले, दोनों प्लेटफ़ॉर्मस पर डाउनलोड की जाने वाली ऐप्स में 50% चीनी निवेश वाली ऐप्स होती है।
वर्तमान में छोटे भारतीय व्यवसाय महामारी के कारण अपने अस्तित्व को बचाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं, ऐसे में चीनी आयातों पर प्रतिबंध से सभी छोटे व्यवसायों को नुकसान पहुंचेगा।
आगे की राह
अनुमानों के अनुसार, कुल चीनी आयात का लगभग एक तिहाई हिस्सा साधारण तकनीकी वस्तुओं का होता है। इन वस्तुओं का उत्पादन पहले भारतीयों द्वारा किया जाता था, तथा अभी भी कम मात्रा में भारतीय इनका निर्माण कर रहे है।
- इन वस्तुओं के आयात को निश्चित रूप से हतोत्साहित किया जा सकता है, और स्थानीय उत्पादों और ब्रांडों द्वारा फिर से प्रतिस्थापित किया जा सकता है।
- इसके अलावा, मांग में कमी आने कारण सुस्त पडी छोटी और मझोली कंपनियों के लिए प्रोत्साहित करने हेतु प्रयास किये जा सकते हैं।
- यदि MSME क्षेत्र गति पकड़ लेता है तो, समग्र विनिर्माण क्षेत्र को बढ़ावा मिलेगा।
- घरेलू बिक्री में वृद्धि होने के साथ भारतीय अधिक प्रतिस्पर्धी बनेगे, तथा वे अपने उत्पादों के निर्यातकों के रूप में उभर सकते हैं, और चीन के साथ विश्व स्तर पर मुकाबला कर सकते हैं।
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