Saturday, 30 April 2016

आरक्षण जातिगत या आर्थिक?


आरक्षण जातिगत या आर्थिक?

आरक्षण तो इस देश में हमेशा से ही बहस, विवाद और राजनीति का विषय रहा है। इस विषय को गुजरात में हार्दिक पटेल के नेतृत्व में आरक्षण की मांग ने हवा दे दी। विगत दिनों में आर्थिक आधार पर आरक्षण की वकालत कुछ लोगों द्वारा की गयी तो पूरे देश में इसके खिलाफ़ एक राज्नीतिक द्वंद सा छिड गया। 
आखिर क्या वजह है कि आर्थिक आधार पर आरक्षण की बात करते ही हमारे राजनीतिक दलों में खलबली मच जाती है????
जब आजाद भारत का संविधान बना तो छूत और अछूत के बीच का भेद खत्म कर दिया । दलितों और आदिवासियों को मुख्यधारा में लाने के लिये संविधान में आरक्षण की व्यवस्था की गयी, जो कि तत्कालीन सामाजिक, शैक्षणिक परिस्थितियों के अनुसार उचित था। परन्तु समय के साथ -साथ परिस्थितियों में परिवर्तन हुआ। अत: देश में लागू आरक्षण नीति पर पुन: विचार विमर्श करने की आवश्यकता है और जो तथ्य सामने आएगे उनके आधार पर भविष्य में आरक्षण के दायरों को सीमित या पूर्णत: समाप्त करने पर विचार करने की आवश्यकता है। परन्तु आरक्षण के इस दायरे को सीमित या समाप्त करने की जगह बडाया जा रहा है।
यदि जाति आधारित और आर्थिक आधार पर आरक्षण का तुलनात्मक विश्लेषण किया जाये तो आर्थिक आधार पर आरक्षण से अधिक लोगों को लाभ पहुचेगा तथा राजनीतिक स्वार्थ के लिये इसका उपयोग भी नहीं हो पायेगा।
गुजरात  सरकार ने राज्य में आर्थिक रूप से पिछ्डे लोगों को शिक्षा व नौकरी में १०% आरक्षण देने का फैसला किया है। इसके साथ ही गुजरात आर्थिक आधार पर आरक्षण देने वाला देश का प्रथम राज्य बन जायेगा।

आज भले ही आर्थिक आधार पर की बात का विरोध हो रहा है, परन्तु यदि इस बात पर विचार विमर्श किया जाये तो हम आरक्षण के उस उद्देश्य को पाने की तरफ अग्रसर हो सकेंगे जिसके लिये संविधान में आरक्षण की व्यवस्था की गई थी।

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