Monday 6 July 2020

जैव ईंधन (Biofuels)

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) हैदराबाद के शोधकर्ता कृत्रिम बुद्धिमत्ता (Artificial Intelligence) आधारित ऐसी कम्प्यूटेशनल विधियों का उपयोग कर रहे हैं जो देश के ईंधन क्षेत्र में जैव ईंधन को शामिल करने से जुड़े कारकों और बाधाओं को समझने में मददगार हो सकती हैं।

इस कार्य की एक विशेषता यह है कि इसके ढाँचे में केवल जैविक ईंधन की बिक्री को राजस्व सृजन का आधार नहीं माना गया है, बल्कि इसके अंतर्गत पूरी परियोजना के चक्र में ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में कटौती के माध्यम से कार्बन क्रेडिट को भी शामिल किया गया है।

इसके परिणाम:

शोधकर्ताओं द्वारा विकसित मॉडल से पता चला है कि मुख्यधारा के ईंधन उपयोग में बायो-एथेनॉल क्षेत्र को शामिल करने पर उत्पादन पर सबसे अधिक 43 प्रतिशत खर्च का आकलन किया गया है।

जबकि, आयात पर 25 प्रतिशत, परिवहन पर 17 प्रतिशत, ढाँचागत संसाधनों पर 15 प्रतिशत और इन्वेंटरी पर 0.43 प्रतिशत खर्च का आकलन किया गया है।

इस मॉडल ने यह भी दिखाया है कि अनुमानित माँग को पूरा करने के लिए कुल क्षमता के कम से कम 40 प्रतिशत तक फीड उपलब्धता की आवश्यकता है।

जैव ईंधन का महत्व:

जीवाश्म ईंधन के घटते भंडार और इसके उपयोग से होने वाले प्रदूषण से जुड़ी चिंताओं ने दुनिया को वैकल्पिक ईंधन की खोज तेज करने के लिए प्रेरित किया है।

  • भारत में, गैर-खाद्य स्रोतों से उत्पन्न जैविक ईंधन कार्बन-न्यूट्रल नवीकरणीय ऊर्जा का सबसे आशाजनक स्रोत है। इन दूसरी पीढ़ी के स्रोतों में कृषि अपशिष्ट जैसे- पुआल, घास और लकड़ी जैसे अन्य उत्पाद शामिल हैं, जो खाद्य स्रोतों को प्रभावित नहीं करते हैं।
  • इसके साथ ही जैव ईधन, सरकार की, ‘मेक इन इंडिया’, ‘स्वच्छ भारत अभियान’, ‘कौशल विकास’ पहलों को अच्छी तरह से आगे बढ़ने में सहायक है।

जैव ईंधन क्या हैं?

कोई भी हाइड्रोकार्बन ईंधन, जो किसी कार्बनिक पदार्थ (जीवित अथवा मृत पदार्थ) से कम समय (दिन, सप्ताह या महीने) में निर्मित होता है, जैव ईंधन माना जाता है।

जैव ईंधन प्रकृति में ठोस, तरल या गैसीय हो सकते हैं।

  1. ठोस: लकड़ी, पौधों से प्राप्त सूखी हुई सामग्री, तथा खाद
  2. तरल: बायोएथेनॉल और बायोडीजल
  3. गैसीय: बायोगैस

जैव ईंधन का वर्गीकरण:

पहली पीढ़ी के जैव ईंधन: को पारंपरिक जैव ईंधन भी कहा जाता है। वे चीनी, स्टार्च, या वनस्पति तेल आदि जैसी चीजों से निर्मित होते हैं। ध्यान दें कि ये सभी खाद्य उत्पाद हैं। खाद्य-सामग्री से निर्मित किसी भी जैव ईंधन को मानव भोजन के रूप में भी प्रयोग किया जा सकता है तथा इसे पहली पीढ़ी का जैव ईंधन माना जाता है।

दूसरी पीढ़ी के जैव ईंधन: संवहनीय फीडस्टॉक से उत्पादित होते हैं। फीडस्टॉक की संवहनीयता, इसकी उपलब्धता, ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन पर इसके प्रभाव, भूमि उपयोग पर इसके प्रभाव तथा इसकी खाद्य आपूर्ति को खतरे में डालने की क्षमता से परिभाषित होती है।

दूसरी पीढ़ी का कोई जैव ईंधन खाद्य फसल नहीं होता है, हालांकि कुछ खाद्य उत्पाद, जब वे उपभोग योग्य नहीं बचते है, तब दूसरी पीढ़ी के जैव ईंधन बन सकते हैं। दूसरी पीढ़ी के जैव ईंधन को अक्सर “उन्नत जैव ईंधन” कहा जाता है।

तीसरी पीढ़ी के जैव ईंधन: शैवाल से प्राप्त जैव ईंधन हैं। इन जैव ईंधन को इनकी विशिष्ट उत्पादन प्रणाली तथा पहली और दूसरी पीढ़ी के जैव ईंधन की अधिकांश कमियों में कमी करने की क्षमता के कारण अलग श्रेणी में वर्गीकृत किया जाता है।

चौथी पीढ़ी के जैव ईंधन: इन ईंधनों के उत्पादन में, जिन फसलों को अधिक मात्रा में कार्बन सोखने के लिए आनुवंशिक रूप से इंजीनियरिंग करके तैयार किया जाता हैं, उन्हें बायोमास के रूप में उगाया और काटा जाता है। इसके पश्चात इन फसलों को दूसरी पीढ़ी की तकनीकों का उपयोग करके ईंधन में परिवर्तित किया जाता है।

जैव ईंधन के उपयोग को बढ़ावा देने हेतु भारत सरकार की पहलें:

वर्ष 2014 से भारत सरकार ने कई ऐसी पहले की हैं जिनसे अन्य ईंधनों में जैव-ईंधनों को मिलाने की मात्रा को बढ़ाया जा सके।

  1. मुख्य पहलों में शामिल हैं: एथेनोल के लिये नियंत्रित मूल्य प्रणाली, तेल विपणन कंपनियों के लिये प्रक्रिया को सरल बनाना, 1951 के उद्योग (विकास एवं नियमन) अधिनियम में संशोधन तथा एथेनोल की खरीद के लिये लिग्नोसेलुलोसिक तरीके को अपनाना।
  2. सरकार ने जून 2018 में राष्ट्रीय जैव-ईंधन नीति – 2018 को मंजूर किया है। इस नीति का लक्ष्य 2030 तक 20% एथेनोल और 5% जैव डीजल मिश्रित करना है।
  3. अन्य कामों के अलावा इस नीति ने एथेनोल उत्पादन के लिये कच्चे माल के दायरे को व्यापक बनाया है साथ ही उच्च कोटि के जैव-ईंधनों के उत्पादन को लाभकारी बनाया है।
  4. सरकार ने शीरे पर आधारित सी-तत्व की प्रचुरता वाले एथेनोल का मूल्य में वृद्धि की है, ताकि एथेनोल मिश्रण के कार्यक्रम को बढ़ावा दिया जा सके।

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