Friday 3 July 2020

चीन से निपटने के लिए SAARC को पुनर्जीवित करने की आवश्यकता

भारत-चीन सीमा तनाव के बीच, चीन अपनी वैश्विक विस्तार रणनीति के तहत दक्षिणी एशिया में भारत के हितों पर हमला कर रहा है।

  1. चीन की पाकिस्तान से निकटता जगजाहिर है।
  2. नेपाल, वैचारिक और भौतिक कारणों से चीन से नजदीकियां बढ़ा रहा है।
  3. चीन बांग्लादेशी उत्पादों पर 97% तक टैरिफ की छूट देकर बांग्लादेश को लुभा रहा है।
  4. चीन ने व्यापक निवेश करके श्रीलंका के साथ अपने 
    संबंधों को भी मजबूत किया है।

saarc


अतः  भारत से भौगोलिक निकटता के बावजूद भी अधिकांश दक्षिण एशियाई देश आयात के लिए चीन पर निर्भर हैं।

नई दिल्ली के लिए यह चिंता का एक प्रमुख विषय होना चाहिए।

वर्तमान में SAARC की प्रासंगकिता

कई विदेशी नीति विशेषज्ञों का मानना है, कि भारत को चीन से रणनीतिक ढंग से निपटने के लिए दक्षिण एशिया से शुरुआत करनी चाहिए।

समय की मांग:


इस संदर्भ में, SAARC को फिर से मजबूत करने की आवश्यकता है, जो कि वर्ष 2014 के पश्चात निष्क्रिय अवस्था में है।

  • गत कुछ वर्षों के दौरान, पाकिस्तान के साथ बढ़ती शत्रुता के कारण, SAARC में भारत के राजनीतिक हितों में काफी गिरावट आई है।

भारत ने SAARC के विकल्प के रूप में BIMSTEC जैसे अन्य क्षेत्रीय निकायों में निवेश करना आरम्भ कर दिया है।

  • हालांकि, BIMSTEC, दक्षिण एशिया में SAARC को प्रतिस्थापित नहीं कर सकता है, इसका मुख्य कारण, SAARC देशों की साझा पहचान तथा इतिहास है। इसके अतिरिक्त, बिम्सटेक भौगोलिक रूप से ‘बंगाल की खाड़ी क्षेत्र’ आधारित है, अतः, यह दक्षिण एशियाई देशों के संयोजन हेतु उपयुक्त मंच बनने के लिए अनुपयुक्त है।

  • दक्षिण एशियाई आर्थिक एकीकरण की प्रक्रिया को पुनर्जीवित किया जाए।
  • विश्व में, दक्षिणी एशिया आर्थिक व्यापार की दृष्टि से सर्वाधिक विभाजित क्षेत्र है, SAARC देशों के मध्य कुल दक्षिण एशियाई व्यापार का बमुश्किल 5% व्यापार होता है, जबकि आसियान क्षेत्र में कुल व्यापार का 25% अंतर-क्षेत्रीय व्यापार होता है।
  • यदपि दक्षिण एशियाई देशों के मध्य व्यापार-समझौतों पर हस्ताक्षर किए गए हैं, परन्तु, राजनीतिक इच्छाशक्ति तथा परस्पर वि
  • श्वास की कमी के कारण व्यापार में सार्थक वृद्धि नहीं हुई है।
  • भारत को आगे बढ़ कर अपने पड़ोसियों के साथ टैरिफ और गैर-टैरिफ बाधाओं को दूर करने के लिए कार्य काम करना चाहिए।
  • इसके साथ ही, वर्ष 2007 से लंबित SAARC निवेश संधि पर वार्ता को फिर से शुरू करने की आवश्यकता है।

आगे की चुनौतियां:

भारत में अक्सर पाकिस्तान विरोधी बयानबाजी और इस्लामोफोबिया संबंधी बातें होती रहती हैं। इसके साथ ही बांग्लादेशी प्रवासी‘ संबंधी बयानबाजी की प्रवृत्ति में बढ़ोत्तरी हो रही है।

  • इस प्रकार की बहुसंख्यक राजनीति से विदेश नीति पर अवांछनीय प्रभाव पड़ता है। इससे भारत की उदार और धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र तथा सॉफ्ट पॉवर (Soft Power) की छवि को ठेस पहुचती है, भारत की यही छवि इस क्षेत्र में भारत के नेतृत्व 
    को नैतिक वैधता प्रदान करती है।
  • इन कारणों से, सरकार की आर्थिक परिकल्पना पेचीदा बनी रहती है। इससे, ‘आत्म-निर्भर भारत’ तथा ‘वोकल फॉर लोकल’ जैसे नारों का वास्तविक अर्थ स्पष्ट नहीं हो पाता है।
  • वर्तमान स्थिति को देखते हुए, कई लोगों का मानना है कि, भारत को अपनी आयात-निर्भरता में कटौती करने की आवश्यकता है, यह, आयात प्रतिस्थापन के अप्रचलित आर्थिक दर्शन पर लौटने का संकेत है।
  • यदि यह संरक्षणवाद की ओर वापस लौटने की निशानी है, तो भारत द्वारा, दक्षिण एशियाई आर्थिक एकीकरण को मजबूत करने में अनिश्चय की स्थिति होगी।

 निष्कर्ष:

क्षेत्रीय आर्थिक एकीकरण को मजबूत करने से SAARC देशों में परस्पर निर्भरता में वृद्धि होगी, जिसमे भारत की केंद्रीय भूमिका होगी। परिणामस्वरूप, भारत के भारत के रणनीतिक हितों की सुरक्षा भी होगी।

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