चर्चा में क्यों?
प्रस्तावित विधेयक के विरोध में कुछ राज्यों द्वारा अपनी चिंताएं व्यक्त की गयी हैं। इन राज्यों में, पश्चिम बंगाल, पंजाब, पुडुचेरी, केरल, राजस्थान, झारखंड, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, दिल्ली, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश सम्मिलित हैं।
इन राज्यों ने मसौदा विधेयक को “सहकारी संघवाद की भावना” का उल्लंघन बताया है। चूंकि, बिजली संविधान के अंतर्गत समवर्ती सूची का विषय है, अतः इन्होने विधेयक पर राज्यों से परामर्श करने में विफलता का केंद्र पर आरोप लगाया है।
विधेयक में विवादास्पद उपबंध
विधेयक में सब्सिडी को समाप्त किये जाने का प्रावधान किया गया है। किसानों सहित सभी उपभोक्ताओं को टैरिफ का भुगतान करना होगा। सब्सिडी को प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण के माध्यम से उपभोक्ताओं के खाते में भेजा जायेगा।
इस उपबंध के संबंध में राज्यों की चिंताएं:
- इसका अर्थ होगा कि उपभोक्ताओं के विद्युत् शुल्क के के रूप में एक बड़ी राशि का भुगतान करना होगा, जबकि सब्सिडी की प्राप्ति बाद में प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण के माध्यम से होगी।
- इससे शुल्क भुगतान में देरी होगी तथा परिणामस्वरूप जुर्माना आरोपित किये जायेंगे तथा कनेक्शनों में कटौती होगी।
इस मसौदे में राज्यों को शुल्क निर्धारित करने के अधिकार से वंचित कर दिया गया है, तथा इसका दायित्व केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त प्राधिकरण को सौपा गया है। यह भेदभावपूर्ण है, क्योंकि इसके द्वारा केंद्र सरकार मनमाने ढंग से टैरिफ को बढ़ा सकती है।
मसौदे के एक अन्य प्रावधान के अंतर्गत राज्य की बिजली कंपनियों के लिए केंद्र द्वारा निर्धारित अक्षय ऊर्जा का न्यूनतम प्रतिशत क्रय करना अनिवार्य किया गया है।
- यह प्रावधान कम-नकद पूंजी वाली पॉवर फर्मों के लिए हानिकारक होगा।
अतिरिक्त जानकारी
वर्तमान में, विद्युत अधिनियम, 2003 द्वारा बिजली के उत्पादन, वितरण, प्रसारण, व्यापार और उपयोग के संबंध में कानूनों को विनियमित किया जाता है।
देश में कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि इस अधिनियम के कुछ प्रावधान पुराने तथा प्रचलन से बाहर हो चुके हैं, तथा इनको अपडेट करने की आवश्यकता है।
केंद्र सरकार ने देश के विद्युत क्षेत्र में बड़े सुधार करने के उद्देश्य से ‘विद्युत अधिनियम (संशोधन) विधेयक, 2020’ को पेश किया गया था।
विधेयक की मुख्य विशेषताएं
नीति संशोधन
नवीकरणीय ऊर्जा: यह केंद्र सरकार को राज्य सरकारों के परामर्श से “अक्षय स्रोतों से बिजली उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए” एक राष्ट्रीय अक्षय ऊर्जा नीति तैयार करने और अधिसूचित करने की शक्ति प्रदान करता है।
सीमा पार व्यापार: केंद्र सरकार को विद्युत् के सीमा पार व्यापार की अनुमति देने तथा सुविधा देने हेतु नियमों और दिशानिर्देशों को निर्धारित करने की शक्ति प्रदान की गयी है।
विद्युत अनुबंध प्रवर्तन प्राधिकरण (Electricity Contract Enforcement Authority) का गठन: मसौदे में उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश की अध्यक्षता में एक ‘केंद्रीय प्रवर्तन प्राधिकरण’ की स्थापना का प्रस्ताव किया गया है।
इस प्राधिकरण के पास विद्युत उत्पादन और वितरण से जुड़ी हुई कंपनियों के बीच बिजली की खरीद, बिक्री या हस्तांतरण से संबंधित अनुबंधों की लागू करने के लिये दीवानी अदालत के बराबर अधिकार होंगे।
कार्यात्मक संशोधन
भुगतान सुरक्षा: मसौदे में ऐसे तंत्र का प्रस्तावित किया गया है जिसमे “संबधित पार्टियों दवारा पर्याप्त भुगतान सुरक्षा पर सहमत हुए बगैर किसी पार्टी को विद्युत् की आपूर्ति नहीं की जायेगी”।
आयोगों / प्राधिकारियों के लिए सदस्यों की सिफारिश करने के लिए चयन समिति का गठन: केंद्र सरकार ने विद्युत अधिनियम के तहत विभिन्न प्राधिकरणों, जैसे विद्युत के लिए अपीलीय न्यायाधिकरण, केंद्रीय विद्युत नियामक आयोग, राज्य विद्युत नियामक आयोग आदि में नियुक्तियां करने के लिए एक आम चयन समिति का प्रस्ताव किया है।
चयन समिति की अध्यक्षता सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश करेंगे। ऊर्जा मंत्रालय के सचिव, दो राज्य सरकारों के मुख्य सचिव (रोटेशन द्वारा चयनित) चयन समिति के सदस्य होंगे।
अनुदान की अनिवार्यता: सब्सिडी का लाभ उपभोक्ता को सीधे उनके खाते में भेजा जाएगा तथा विद्युत् वितरण करने वाली कंपनियां आयोग द्वारा निर्धारित टैरिफ के अनुसार उपभोक्ताओं से शुल्क वसूल करेंगी। इसके अलावा, टैरिफ नीतियों, सरचार्ज और क्रॉस सब्सिडी को उत्तरोत्तर कम किया जाएगा।
फ्रेंचाइजी और उप- वितरण लाइसेंस: केंद्र सरकार ने इस मसौदे में राज्यों में विद्युत वितरण कंपनियों को किसी क्षेत्र विशेष में विद्युत् वितरण के लिये फ्रेंचाइजी और उप- वितरण कंपनियों को जोड़ने का अधिकार देने का प्रस्ताव किया है।
अपीलीय न्यायाधिकरण की शक्तियों का संवर्द्धन: इस मसौदे में अध्यक्ष के अतिरिक्त अपीलीय न्यायाधिकरण की क्षमता को 7 सदस्यों तक बढ़ाने का सुझाव दिया गया है। जिससे मामलों के त्वरित निस्तारण हेतु कई पीठों की स्थापना की जा सके, साथ ही न्यायाधिकरण के फैसलों के अनुपालन को सुनिश्चित करने के लिये इसे और अधिक सशक्त बनाने का प्रस्ताव भी किया गया है।
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