राष्ट्रीय संस्थागत रैंकिंग फ्रेमवर्क (National Institutional Ranking Framework- NIRF) का आरम्भ वर्ष 2015 में किया गया था।
इस फ्रेमवर्क का उपयोग विभिन्न श्रेणियों तथा ज्ञान-क्षेत्रों में उच्च शैक्षणिक संस्थानों को रैंकिंग प्रदान करने में किया जाता है।
संस्थानों की रैंकिंग हेतु निम्नलिखित मापदंडों का उपयोग किया जाता है:
- शिक्षण, अध्ययन एवं संसाधन (Teaching, Learning and Resources)
- अनुसंधान एवं व्यावसायिक क्रियाएं (Research and Professional Practices)
- स्नातक परिणाम (Graduation Outcomes)
- पहुँच एवं समावेशिता (Outreach and Inclusivity)
- धारणा (Peer Perception)
NIRF का उपयोग
- राष्ट्रीय संस्थागत रैंकिंग फ्रेमवर्क, संस्थानों को परस्पर प्रतिस्पर्धा करने तथा एक साथ विकास की दिशा में कार्य करने हेतु प्रोत्साहित करता है।
- ये रैंकिंग भारत में उच्च शिक्षा के विकास के लिए ‘स्टडी इन इंडिया‘ कार्यक्रम के लिए एक ठोस आधार प्रदान करती है, तथा विदेशी छात्रों को भारत में पढने हेतु आकर्षित करती है।
- NIRF के अंतर्गत रैंकिंग, इंस्टीट्यूशन ऑफ एमिनेंस (Institutions of Eminence– IoE) योजना के तहत निजी संस्थानों के आकलन हेतु एक मापदंड भी होती है।
इस संस्करण में किये गए परिवर्तन
- यह भारत में उच्च शैक्षणिक संस्थानों की इंडिया रैंकिंग का लगातार पांचवा संस्करण है।
- वर्ष 2020 में “डेंटल” श्रेणी को पहली बार शामिल किया गया, जिससे इस वर्ष कुल श्रेणियों / विषय क्षेत्रों की संख्या दस हो गई है।
भारतीय संस्थान क्यूएस वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग जैसी अंतर्राष्ट्रीय रैंकिंग में अच्छा प्रदर्शन क्यों नहीं करते?
अंतर्राष्ट्रीय रैंकिंग में, भारतीय संस्थानों को वैश्विक रैंकिंग में प्रयुक्त मापदंडो के “अंतर्राष्ट्रीयकरण” से जूझना पड़ता है। इसका कारण है कि वैश्विक रैंकिंग में ‘धारणा’ को उच्च भारांक दिया जाता है, जो कि एक व्यक्तिपरक मापदंड होता है।
जबकि, NIRF में, 90% मापदंड पूरी तरह से वस्तुनिष्ठ और तथ्य आधारित होते हैं, तथा मात्र 10% मापदंड, शैक्षणिक सहकर्मियों तथा नियोक्ताओं की व्यक्तिपरक धारणा पर आधारित होते है।
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