Tuesday, 16 June 2020

गर्भधारण पूर्व और प्रसवपूर्व निदान-तकनीक’ (PC&PNDT) नियमों के निलंबन पर चिंताएं

चर्चा का कारण
उच्चत्तम न्यायालय ने सरकार से COVID-19 महामारी के दौरान देशव्यापी लॉकडाउन के मध्य ‘प्रसव पूर्व लिंग निर्धारण तथा लिंग चयन’ संबधित नियमों को निलंबित करने के निर्णय संबंधी कारणों को जून के अंत तक स्पष्ट करने को कहा है। हालांकि, कोर्ट ने नियमों के निलंबन संबंधी अधिसूचना पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है।
पृष्ठभूमि
केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा 4 अप्रैल, 2020 को अधिसूचना जारी की गयी थी, जिसमें ‘गर्भधारण पूर्व और प्रसवपूर्व निदान-तकनीक (लिंग चयन प्रतिषेध)’ (Pre-Conception and Pre-natal Diagnostic Techniques (Prohibition of Sex-Selection Rules)- PC&PNDT) नियम 1996 के कुछ प्रावधानों के कार्यान्वयन पर 30 जून 2020 तक रोक लगा दी गयी थी।
अधिसूचना के द्वारा PC&PNDT अधिनियम के नियमों 8, 9(8) और 18ए(6) को निलंबित कर दिया गया है।
  • इन नियमों के निलंबन के परिणामस्वरूप देश में लिंग-चयनात्मक गर्भपातों में वृद्धि होने की सम्भावना है, इस आधार पर सरकार की व्यापक रूप से आलोचना की गयी।
  • इन नियमों के अभाव में, क्लिनिक मालिकों तथा माता-पिता द्वारा चिकित्सा तकनीकों के दुरुपयोग की आशंका है।
PC&PNDT अधिनियम की धारा 9
गर्भधारण पूर्व और प्रसवपूर्व निदान-तकनीक (लिंग चयन प्रतिषेध)’ अधिनियम की धारा 9 (8) का निलंबन विशेष चिंता का विषय है।
नियम 9 (8) के अनुसार: प्रत्येक अल्ट्रासाउंड क्लिनिक, जेनेटिक काउंसलिंग सेंटर, जेनेटिक प्रयोगशाला, जेनेटिक क्लिनिक एंड इमेजिंग सेंटर, संबंधित प्राधिकृत अधिकारी को प्रत्येक माह की 5 तारीख तक सभी पूर्व-गर्भाधान या गर्भावस्था से संबंधित प्रक्रियाओं / तकनीकों / परीक्षणों के संबंध में एक पूरी रिपोर्ट भेजेंगे।
चिंता का कारण: चूंकि चिकित्सा सुविधाएं ‘आवश्यक सेवाओं’ (Essential Services) के अंतर्गत आती हैं और इन सेवाओं को लॉकडाउन से छूट प्रदान की गयी है। इस दौरान यदि क्लिनिक खोला जाता है तथा इसमें परीक्षण किये जाते है तो इन परीक्षणों का एक रजिस्टर रखना अनिवार्य होगा। 
 PC&PNDT नियमों के निलंबन से गैर-कानूनी प्रक्रियाओं में वृद्धि हो सकती है।

PC&PNDT अधिनियम के बारे में
गर्भधारण पूर्व और प्रसवपूर्व निदान-तकनीक (लिंग चयन प्रतिषेध) अधिनियम, 1994 को भारत में गिरते लिंगानुपात को रोकने के लिये लागू किया गया था। भारत में लिंगानुपात वर्ष 1901 में 972 से घटकर वर्ष 1991 में 927 हो गया था।
इस अधिनियम का मुख्य उद्देश्य गर्भाधान के बाद भ्रूण के लिंग निर्धारण करने वाली तकनीकों के उपयोग पर प्रतिबंध लगाना और लिंग आधारित गर्भपात के लिये प्रसव पूर्व निदान तकनीक के दुरुपयोग को रोकना है।
अधिनियम के अंतर्गत अपराध: गर्भधारण पूर्व और प्रसव पूर्व निदान तकनीक (लिंग चयन प्रतिषेध) अधिनियम, 1994 के अन्‍तर्गत गर्भाधारण पूर्व या बाद लिंग चयन और जन्‍म से पहले कन्‍या भ्रुण हत्‍या के लिए लिंग परीक्षण करना, इसके लिए सहयोग देना व विज्ञापन देना कानूनी अपराध है।
इसके अधिनियम के तहत, किसी भी प्रयोगशाला या केंद्र या क्लिनिक द्वारा भ्रूण के लिंग का निर्धारण करने के उद्देश्य से अल्ट्रासोनोग्राफी सहित कोई परीक्षण करना प्रतिबंधित किया गया है।
अधिनियम के अंतर्गत, सभी नैदानिक ​​प्रयोगशालाओं, सभी आनुवंशिक परामर्श केंद्रों, आनुवंशिक प्रयोगशालाओं, आनुवंशिक क्लीनिकों और अल्ट्रासाउंड क्लीनिकों हेतु पंजीकरण कराना अनिवार्य किया गया है।
संशोधन
  1. वर्ष 2003 में, लिंग चयन में प्रयुक्त होने वाली तकनीकों के विनियमन में सुधार करने हेतु PC&PNDT अधिनियम में संशोधन किया गया था।
  2. इस संसोधन के तहत, पूर्व गर्भाधान लिंग चयन तथा अल्ट्रासाउंड तकनीको को अधिनियम के दायरे में लाया गया था।
  3. संशोधन के अंतर्गत केंद्रीय पर्यवेक्षी बोर्ड को अधिक शक्तियां प्रदान की गयी तथा राज्य स्तरीय पर्यवेक्षी बोर्डों का गठन किया गया।
अधिनियम की आवश्यकता
  1. भारत में स्त्रियों की स्थिति प्रत्‍यक्ष और परोक्ष रूप से, बालिकाओं के स्‍वास्‍थ्‍य की स्थिति को प्रभावित करती हैं। देश के विभिन्‍न भागों में किये गये अध्‍ययनों में कन्‍या शिशु हत्‍या के मामले पाये गये हैं।
  2. गर्भधारण पूर्व और प्रसवपूर्व निदान-तकनीक (लिंग चयन प्रतिषेध) अधिनियम तथा इसके नियमों का उद्देश्य इस सामाजिक बुराई पर प्रतिबंध लगाना तथा इसे समाप्त करना है।

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